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अग्निकी वर्षा होगी ।
मुनिश्री नंदीघोष विजयजीने अपनी 'जैनदर्शन : वैज्ञानिक दृष्टिसे' पुस्तकमें (पृ. १९९) में इस तरह लिखा है
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बौद्ध और जैनदर्शन के विविध आयाम
" जैन दृष्टिसे निर्देशित कालविभाजन के अनुसार छठ्ठा आरा वर्णन में बताया गया है कि उसी समयमें अग्नि की वर्षा होगी, नमक आदि क्षारोंकी वर्षा होगी, जो विषाक्त होगी । उससे पृथ्वीमें हाहाकार होगा । इस तरह से पृथ्वी का प्रलय होगा । मनुष्य आदि लोग दिनमें वैताढ्यपर्वतकी गुफामें रहेंगे और रात्रिके समय ही बहार निकलेंगे । सब मांसाहारी होंगे ।'
आज के पर्यावरणवादियोंने ओझोन वायुके नष्ट होते जाते स्तरके बारे में जो चिंता व्यक्त की है, उसीका संदर्भ तो यहाँ नहि मिल रहा है ?
ब्रह्मांड की किसी भी क्रिया उसके अपने नियमों से विरुद्ध कभी नहीं: होती है । ब्रह्मांड की संरचना और विभिन्न क्रिया-प्रतिक्रिया के अवलोकन करने
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के बाद ही हमारे पूर्वाचार्योंने सही जीवन के लिए एक आदर्श प्रस्तुत किया था । प्रकृति के साथ मेल-जोल से जीवनयापन करनेकी व्यवस्था ही मनुष्य के वर्तमान और भावि के लिए उपयोगी सिद्ध हो सकती है ।
जैनदर्शनमें उपदेशित अपरिग्रह, परिग्रहपरिमाणव्रत अथवा इच्छापरिमाण व्रत भी महत्त्व का है ।
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गृहस्थ साधक को अपने रोजबरोजके जीवनमें उपयोगी चीजों के परिग्रह की मर्यादा निश्चित करनी होती है जैसे साधना की दृष्टि से इच्छा का परिसीमन अति आवश्यक है । जैन विचारणा में गृहस्थ साधक को नौं प्रकार के परिग्रह की मर्यादा निश्चित करनी होती है - १. क्षेत्र - कृषि भूमि अथवा अन्य खुला हुआ भूमि भाग, २. वास्तु - मकान आदि अचल सम्पत्ति, ३. हिरण्य - चांदी अथवा चांदी की मुद्राएँ, ४. स्वर्ण - स्वर्ण अथवा स्वर्ण मुद्राएँ, ५. द्विपद - दास दासी - नौकर, कर्मचारी इत्यादि, ६. चतुष्पद - पशुधन, ७. धन चल सम्पत्ति, ८. अनाजादि ९. कुप्य घर गृहस्थी का अन्य सामान ।
धान्य
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साधक वैयक्तिक रूप से भी अपने जीवन की दैनिक क्रियाओं जैसे आहारविहार अथवा भोगोपभोग का परिमाण भी निश्चित करता है। जैन परम्परा इस संदर्भ में अत्याधिक सतर्क है। व्रती गृहस्थ स्नान के लिए कितने जलका उपयोग करेगा, किस वस्त्रसे अंग पोंछेगा यह भी निश्चित करना होता है। दैनिक जीवन के व्यवहार की