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बौद्ध और जैनदर्शन के विविध आयाम . अपनी आगे की अट्ठकथाओं के प्रारम्भ में ही बार-बार कहा है - 'चारों निकायों (दीघ, मज्झिम, संयुक्त तथा अंगुत्तर) के मध्य स्थित यह विसुद्धिमग्ग उन निकायों के बुद्ध सम्मत अर्थ को प्रकाशित करने में सहायक होगा।' .
इससे यह स्पष्ट ही सिद्ध है कि आचार्य ने पहले विसुद्धिमाग की रचना की, बाद में उक्त चारों निकायों की अट्टकथाओं की । इसीलिये विसुद्धिमग्ग में जिस विषय का विस्तृत निरूपण कर दिया है उसे पुनः उन अट्ठकथाओं में नहीं दुहराया.।
आचार्य बुद्धघोषने साधकों के कल्याण के लिये ही योगशास्त्र के मार्गदर्शन के रूप में इस ग्रंथ की रचना की है । विषय समझने में दुर्बोध लगता है, लेकिन , शैली सूत्रात्मक और भाषा सरल है । बौद्धदर्शन के सिद्धान्तों का विशद् परिचय प्राप्त करने के लिये यह ग्रंथ अनेक दृष्टि से उपयोगी है ।
संदर्भ ग्रंथ १. पालि साहित्य का इतिहास - श्री भरतसिंह उपाध्याय २. पालि साहित्य का इतिहास - श्री राहुल सांकृत्यायन ३. विसुद्धिमग्गो - संपा. स्वामी द्वारिकादास शास्त्री