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धर्म और विज्ञान का समन्वय करके उन्होंने धर्म के मुख्य चार चरण बताये हैं - श्रद्धा, प्रेम, सत्य और त्याग । इनसे मनुष्य समत्व-योग की ओर आगे बढ़ता है।
तृष्णाओं और रागात्मक संबंधों के कारण प्राणी में असंख्य इच्छाओं, वासनाओं, कामनाओं एवं उद्वेगों का जन्म होता है । इन्द्रियों के विषयों से वशीभूत हो कर इनकी पूर्ति व तृप्ति के लिए सदैव आकुल और दुःखी रहता है। यह आसक्ति या राग न केवल उसे समत्व के स्वकेन्द्र से च्युत करता है, वरन उसे बाह्य पदार्थों के आकर्षण क्षेत्र में खींच कर उसमें एक तनाव भी उत्पन्न करता है । इससे चेतना दो केन्द्रों में बंट जाती है और दोहरा संघर्ष उत्पन्न हो जाता है । (१) चेतना के आदर्शात्मक और वासनात्मक पक्षों में (इसे मनोविज्ञान में 'इड' और 'सुपर इगो' का संघर्ष कहा है) तथा (२) हमारे वासनात्मक पक्ष का उस बाह्य परिवेश के साथ, जिसमें वह अपनी वासनाओं की पूर्ति चाहता है । इस विकेन्द्रीकरण और तज्जनित संघर्ष में हमारी सार शक्तियां बिखर जाती हैं, कुण्ठित हो जाती हैं । नैतिक साधना का कार्य इस संघर्ष को मिटाकर चैतसिक और साथ में स्नायविक जीवन में भी समत्व स्थापन करने का और आन्तरिक उद्दीपकों के तनाव को समास करने का है। ... धर्म और अध्यात्म का आधार केवल चिंतन नहीं है, लेकिन अनुभव है। संसार के प्रति जो राग है, उस राग का क्षय होता है, वि-राग उत्पन्न होता है इसके बीच में अनुभूति की शृंखला है, वहाँ से धर्मजिज्ञासा का आरंभ होता है । धर्म मन से पार का विज्ञान है । और विज्ञान भी शांत-सुखी-निरामय जीवन के लिये मन और शरीर की समतुला का आग्रह रखता है।
.. शायद इस लिये हमारे क्रान्तदृष्टा ऋषिमुनियों द्वारा प्रेरित भारतीय साधना का केन्द्रीय तत्त्व समत्वयोग है । जैन, बौद्ध एवं गीता के आचारदर्शनों में समत्व की उपलब्धि के लिये त्रिविध साधनापथ का प्रतिपादन किया है । चेतना के ज्ञान, भाव और संकल्पपक्ष को सम्यक् दर्शन, सम्यक्ज्ञान और सम्यक् चारित्र का प्रतिपादन करता है, बौद्धदर्शन शील, समाधि और प्रज्ञा का तथा श्रीमद् भगवद् गीता ज्ञानयोग, कर्मयोग और भक्तियोग का महत्त्व प्रतिपादित करते हैं। हमारे नीतमूलक सदाचारजैसे धुति, मार्दव, करुणा, क्षमा... आदि का एक ही लक्ष्य है मन की शांति और शरीर की - मन की तंदुरस्त - प्रसन्न अवस्था । ... मनुष्य के मनमें रहे हुए ममत्व, ईर्ष्या, क्रोध आदि कषायो, तृष्णा-मोह आदि भी सब अनिष्टों के मूल में हैं । विषयभोग की वासना सारे संघर्षों की जननी