Book Title: Bauddh aur Jain Darshan ke Vividh Aayam
Author(s): Niranjana Vora
Publisher: Niranjana Vora

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Page 63
________________ ५६ बौद्ध और जैनदर्शन के विविध आयाम गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं : ध्यायतो विषयान्पुसहः संगस्तेषूपजायते संगान्सञ्जायते कामः कामोत्क्रोधोऽभिजायते । . क्रोधाद् भवति संमोहः संमोहात्स्मृतिविभ्रमः । स्मृतिभ्रंशाबुद्धिनाशो, बुद्धिनाशात्प्रणश्यति । इस तरह विषयो के उपभोग के प्रति राग-तष्णा या मोह व्यक्ति का सर्वनाश कर सकती है और व्यक्ति पर ही समाज निर्भर है । सामाजिक जीवन में व्यक्ति का अहंकार भी निजी लेकिन महत्त्व का स्थान रखता है। शासन की इच्छा या आधिपत्य की भावना इसके केन्द्रिय तत्त्व हैं। इसके कारण सामाजिक जीवन में भी विषमता उत्पन्न होती है। हमारे धर्म संस्थापको ने व्यक्ति के संदर्भ में सामाजिक शांति-संवादिता और सुव्यवस्था के बारे में भी सोचा है। वस्तुतः मनुष्य न केवल आध्यात्मिक सत्ता है और न केवल भौतिक सत्ता है। उसमें शरीर के रूप में भौतिकता है और चेतना के रूप में आध्यात्मिकता है। यही कारण है कि मानवी चेतना को दो स्तरों पर समायोजन करना होता है - (१) चैतसिक (आध्यात्मिक) और (२) भौतिक । लेकिन सामान्य परिस्थिति में इन दोनों के बीच संघर्ष ज्यादा चलता है। जब आसक्ति, लोभ या राग के रूप में पक्ष उपस्थित होता है तो द्वेष या घृणा के रूप में प्रतिपक्ष भी उपस्थित होता है। पक्ष और प्रतिपक्ष की यह आंतरिक उपस्थिति संघर्ष का कारण बनती है। हमारे व्यावहारिक जीवन की विषमताएं तीन है : आसक्ति, आग्रह और अधिकारभावना । यही वैयक्तिक जीवन की विषमताएं सामाजिक जीवन में वर्गविद्वेष, शोषकवृत्ति और धार्मिक एवं राजनैतिक मतान्धता को जन्म देती है। परिणारूप हिंसा, युद्ध और वर्गसंघर्ष पनपते हैं। सारी विषमताों कर्म-जनित है और कर्म राग-द्वेष जनित है। राग-द्वेष से रहित मनोवृत्ति ही आत्मा की स्व-भाव दशा है - वही समत्वयोग है। अथवा शम् अर्थात् क्रोधादि कषायों को शमित (शांत) करना भी समत्वयोग है । राग-द्वेष से युक्त होना आत्मा की वि-भाव दशा है । समत्वयोग राग-द्वेष के द्वंद्व से उपर उठाकर आत्मा को स्वभावमें स्थापित करता है। यह आंतरिक संतुलन है। आंतरिक संतुलन की उपस्थिति में बाह्य जागतिक विक्षोभ विचलित नहीं कर सकते हैं । साधना के आचारपक्ष का शरीरविज्ञान और मनोविज्ञान के साथ और सामाजिक विज्ञान के साथ भी - इस तरह अतूट संबंध है । शारीरिक और मानसिक या भौतिक और चैतसिक स्तर पर संतुलन साधना और तनावमुक्त बनना - यह

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