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बौद्ध और जैनदर्शन के विविध आयाम
लक्ष्य है । लेकिन विज्ञान का फलित है उपभोक्तावादी-रागप्रेरक भौतिक जीवन । विज्ञान की इस प्रवृत्ति से मानवता के समक्ष संकटपूर्ण स्थिति का निर्माण हुआ है। अणुशस्त्रों का निर्माण, विनाशक शस्त्रों का विचारहीन उच्छृखल प्रयोग, पर्यावरण का प्रदूषण - ये सब समस्याएँ भौतिकवाद और विज्ञान द्वारा संशोधित साधनों के अनियंत्रित उपयोग की वजह से उत्पन्न हुई है । यदि सामाजिक मनुष्य के लिये राग आवश्यक है तो विराग भी आवश्यक है। राग और विराग की, सुखोपभोग और संयमित जीवन की सीमा का निर्धारण करने के लिए आवश्यक है अध्यात्म और विज्ञान का समन्वित दृष्टिकोण ।
जैसे आचार्य महाप्रज्ञजीने कहा है कि आज का प्रबुद्ध व्यक्ति नई दिशा के खोज में है। वह नई दिशा है अध्यात्म और विज्ञान का समन्वय । समन्वय का अर्थ है - सत्य की खोज का दृष्टिकोण वैज्ञानिक रहे, केवल मानकर ही नहीं चलें, विश्वास को प्रयोग की भूमिका का विरेचन कर उसके विशुद्ध रूप को प्रकट किया जाए । अध्यात्म के क्षेत्र में काम करनेवाले लोग सत्य की खोज पर अधिक बल दें, मैत्री भावना को पुष्ट बनाए रखें | विज्ञान के क्षेत्र में, काम करनेवाले लोग मैत्रीभावना पर अधिक बल दें, सत्य की खोज को अहिंसा अथवा मैत्री भावना से विच्छिन्न न करें। आवश्यकता है कि विज्ञान के परिणामों पर अंकुश रखा जाए और वह अंकुश है धर्म या अध्यात्म ।
हमारा जीवन न केवल आत्मिक है और न केवल भौतिक । वह आत्मा और पदार्थ-भूत दोनों का योग है । अतः हमारे व्यवहारिक जीवन में अध्यात्म और विज्ञान दोनों का योग-संयोग हो तभी वह सार्थक, चरितार्थ बन सकता है।
संदर्भ ग्रंथ १. जैन, बौद्ध और गीता के आचार दर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन भाग-१,२,
ले. सागरमल जैन । २. आधुनिक मनोविज्ञान और श्री अरविंद, ले. रोहित महेता ३. योग और समग्र स्वास्थ, ले. योगीश्री स्वामी राम ४. आपणा घरमां, आचार्य महाप्रज्ञ ५. महाप्रज्ञ दर्शन, डॉ. दयानन्द भार्गव
आचार्य महाप्रज्ञजी के लेख - धर्म और विज्ञान - अध्यात्म और विज्ञान - स्वास्थ्य : अध्यात्म और विज्ञान के संदर्भ में.
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