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बौद्ध और जैनदर्शन के विविध आयाम
'त्यारे शी रीते थाय ?'
'हाथमांथी शस्त्र त्यजीने अने मनमांथी झेर त्यजीने. अ पण ले ले, ते मारा देहने अग्निदाह करे; ओ पण लेनार कोई न मळे तो मारा देहने अमनो अम छोडी
देजो...'
रुद्रत्त का कहना है कि अहिंसा का पूर्ण रूपसे पालन करनेवाला ही उनके देह का अग्निदाह कर सकता है । बौद्धदर्शन के संदर्भ में भी उनके शब्द मननीय
मनुभाई पंचोळी - 'दर्शक' की नवलकथाओं झेर तो पीधां छे जाणी जाणी' के बारे में श्री डोलरराय मांकडने बताया है कि बौद्ध धर्म के महायान पंथ में वर्णित चार ब्रह्मविहार - मैत्री, करुणा, मुदिता और उपेक्षा की भावना के आधार पर ही यह नवलकथा का रचनासंविधान हुआ है। व्यक्ति और समष्टि के विकास के लिये ये चार सोपान हैं । मैत्री, करुणा और मुदिता के अनेक दृष्टान्त यहाँ मिलते हैं लेकिन उपेक्षा का यह भाव जो सत्यकाम के शब्दों में प्रगट हुआ है, वह बडा मार्मिक है। शारीरिक रोग का दर्द वह सह नहीं पाता है और नदी में डूबने के लिये जा रहा है तब वह कहता है- "मोतनी नजीक तो हुँ अवारनवार गयो छु, पण ते दिवसे ते निर्भयता हती ते ताळे विरल हती. हुं खाळे कोई बीजाने डूबतो जोई रह्यो हतो. तेमां ताळे जोवानो आनंद आवतो हतो-" वह किसी और को डूबता देख रहा था - अपने प्रति संपूर्ण अनासक्त हो गया था । उपेक्षावृत्ति का यह स्पष्ट दृष्टान्त है ।
भगवान वृद्ध के जीवन और विचारधारा से प्रभावित रेथन्यु कहता है : "बुद्ध ! अहोहो ! शुं महाप्रज्ञ पुरुष ! विस्तीर्ण महावृक्ष ! अमनी विरलता ए छे के तेओ जगतनो स्वीकार पण करे छे ने अस्वीकार पण करे छे ! हुं धाएं छु के बुद्ध ए पहेला महापुरुष छे जेमणे दुनियानां सुखोनो समूळगो नकार कर्यो नथी. छतां दुन्यवी सुखोनी पाछळ पडीने तेने दुःखमां पलटी नाखवा सामे पण तेमणे चेतवणी आपी छे.... मध्यम मार्गनी वात साची छे... लोकोने संपूर्ण विरोध पण समजाय छे अने संपूर्ण शरणागति पण स्वीकार्य बने छे... परंतु आंशिक स्वीकार अने आंशिक अस्वीकार तेमने समजातां नथी.
गौतम बुद्ध के मध्यम मार्ग का महत्त्व यहां समझाया गया है। .
गुजराती साहित्य में तथागत बुद्ध की विचारधारा का प्रभाव अन्यत्र भी देख सकते हैं । यहाँ तो कतिपय दृष्टान्तों द्वारा बौद्ध दर्शन के प्रभाव की थोडी सी झलक बतानेकी कोशिश ही की है। .