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नारीवादी आंदोलन और भारत में महिलाओं की स्थिति
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को चुनौती देती रही है । लेकिन गौतम बुद्ध के बारे में यह बात भी सही है कि समाज में स्त्रियों के सम्मानीय दरज्जा का उन्होंने स्विकार किया । राजा प्रसेनजित को पुत्री जन्म से खिन्न होते हुए देख कर उन्होंने कहा था कि 'हे राजा, पुत्री भी श्रेय करनेवाली होती है, इस लिये तुम पुत्री का पालन भी पुत्र की तरह करो' और 'स्त्रियों ही पुरुषो की सर्वश्रेष्ठ मित्र बनती है ।' - (संयुक्त निकाय) । आधुनिक समयमें महात्मा गांधीजीने स्त्री स्वतंत्रता और समानता की जोरदार हिमायत की, अलबत्त जैविक संरचना की असमानता के कारण उन्होंने दोनों के अलग कार्यक्षेत्रों का भी स्वीकार किया । उन्होंने कहा की स्त्रियों के लिये यह जरूरी नहि है कि कंधे पर बंधूक रखकर युद्धभूमि में जाये । स्त्री पुरुष दोनों अपने स्थान पर श्रेष्ठ हैं, दोनों में स्पर्धा की आवश्यकता नहीं 1
राष्ट्रीय आंदोलन में महिलाओं की काफी महत्त्वपूर्ण भूमिका थी । राष्ट्रीय आंदोलन के विभिन्न चरणों में महिलाओं ने भारी संख्या में भाग लिया, अपनी आशाओं और आकांक्षाओ के साथ संख्यात्मक दृष्टि से तो उसे मजबूत बनाया ही, वे आंदोलन में अपने मुद्दे और मसविदे भी साथ लेकर आईं।
सन् १९२०-२२ में जब असहयोग आंदोलन शुरू हुआ तो पहली बार महिलाएं भारी संख्या में आंदोलन से जुडी । मुंबई में महिलाओं ने राष्ट्रीय स्त्री सभा का गठन किया और वह पूरी तरह राष्ट्रीय एक्टीविज्म के प्रति समर्पित था । यह पहला महिला संगठन था जो बिना पुरुषों की मदद से चलाया जाता था । इसके दो उद्देश्य थें- स्वराज और महिलाओं का उद्धार एवं उत्थान ।
इस अवधि में अन्य महिला संगठन भी बनें- जैसे देशसेविका संघ, नारी संत्याग्रह समिति, महिला राष्ट्रीय संघ, लेडीज पेकेटिंग बोर्ड, स्त्री स्वराज संघ और स्वयंसेविका संघ आदि । हम राष्ट्रीय आंदोलन में महिलाओं की भागीदारी को देखते हैं तो वह उनकी घरेलू भूमिका का विस्तारमात्र ही दिखती हैं । इस भागीदारी में उन्हें राजनीतिक क्षेत्र में पुरुषों के समान कोई चुनाव या स्वतंत्र कार्य करने की गुंजाईश नहीं थी। आंदोलन में उनकी भागीदारी से न तो उनके घरेलू जीवन या पारिवारिक समीकरणों में कोई अंतर आया, न उनकी जीवन शैली में कोई परिवर्तन आया और न ही उनकी राजनीतिक भूमिका में कोई बदलाव आया ।
हिंदू कोड बिल के पास होने से हिंदू महिलाओं की परिवार, विवाह तथा संपति के क्षेत्र में स्थिति कुछ बेहतर हुई। हालांकि श्रम कानूनों में भी कुछ सुधार किए गए। लेकिन ये सभी कानून भी अपर्याप्त थे ।