Book Title: Bauddh aur Jain Darshan ke Vividh Aayam
Author(s): Niranjana Vora
Publisher: Niranjana Vora

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Page 54
________________ . नारीवादी आंदोलन और भारत में महिलाओं की स्थिति (बुद्ध-गांधी के विचार के संदर्भ में) - नारीवाद की कोई एसी परिभाषा नहीं है जो हर समय और हर स्थान पर लागू की जा सके। नारीवाद की परिभाषा और इसका रूप समाज व समय के अनुसार बदलता रहता है । इसका मतलब और इसका रूप समाज की संस्कृति, वहाँ की आर्थिक, सामाजिक सच्चाइयों व लोगों की समझ और चेतना पर निर्भर करता है । जिस प्रकार पानी उसी बर्तन का आकार ले लेता है, जिसमें उसे डाला जाता है, उसी तरह नारीवाद भी स्थानीय हालातों और मुद्दों के अनुसार खुद को ढाल लेता है । इसका अर्थ है कि सत्रहवीं शताब्दी में "नारीवाद" का (जब फैमिनिज्म का सर्वप्रथम प्रयोग किया गया) .एक विशेष अर्थ था तो सन् २००० में इसका कुछ बिल्कुल ही भिन्न अर्थ है। .. लेकिन फिर भी आज के समय में नारीवाद की दो परिभाषाएं हैं जिन्हें दो दक्षिण एशियाई स्तर की कार्यशालाओं में, बंगलादेश, भारत, नेपाल, पाकिस्तान व श्रीलंका की औरतों ने माना । पहली परिभाषा हैं - "समाज में, काम के स्थान और 'परिवार में होनेवाले स्त्रियों के दमन व शोषण के प्रति विरोध का भाव तथा स्त्रियों व पुरुषों द्वारा इन परिस्थितियों को बदलने की दिशा में जागरूक सक्रियता।" दूसरी परिभाषा, जो कि ज्यादा सुनिश्चित है, के अनुसार - "पितृसत्तात्मक नियंत्रण व परिवार, काम की जगह व समाज में, भौतिक व वैचारिक स्तर पर औरतों के काम, प्रजनन और यौनिकता के दमन व शोषण के प्रति जागरूकता, तथा स्त्रियों व पुरुषों की इन मौजुदा परिस्थितियों को बदलने की दिशा में सभान सक्रियता ही नारीवाद है।"

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