Book Title: Bauddh aur Jain Darshan ke Vividh Aayam
Author(s): Niranjana Vora
Publisher: Niranjana Vora
View full book text
________________
४८
बौद्ध और जैनदर्शन के विविध आयाम
नारीवाद की मुख्य धाराएं हैं - उदारवादी नारीवाद (Liberal Feminism), अतिवादी नारीवाद (Radical Feminism), मार्क्सवादी नारीवाद (Marxist Feminism), समाजवादी नारीवाद (Socialist Feminism), पर्यावरण से जुडा नारीवाद (Eco Feminism), इसके अलावा सांस्कृतिक नारीवाद (Cultural Feminism), इस्लामी नारीवाद (Islamic Feminism), व गांधीवादी नारीवाद (Gandhian Feminism) भी सुनने को मिलते है । ये सभी नारीवाद 'औरतों की बेहतरी की बात करते हैं, साथ ही यह मौजूदा स्थिति का विश्लेषण करके, उसके कारणों को समझकर, उसे सुधारने के लिए वचनबद्ध हैं। .. . ____ भारत में नारीवाद का प्रभाव पश्चिमी देशो की देन माना जाता हैं लेकीन हमारे देश व समाज में स्त्रियां शोषण व दमन की शिकार हैं तो फिर इस शोषण व दमन के खिलाफ उठाई जानेवाली आवाज को हम कैसे "पश्चिमी" या "विदेशी" कह कर नकार या दबा सकते हैं ? जहां पर औरत को बराबरी का दर्जा हासिल नहीं है वहां पर नारीवाद के बीज जरूर मौजूद होंगे। मौका पाते ही ये बीज पनपने लगते हैं। शब्द के रूप में नारीवाद चाहे विदेशी हो परन्तु प्रक्रिया के रूप में इसकी धारणा विदेशी नहीं हैं।
स्त्रियों से सम्बन्धित बहस हमारे देशों में बहुत पुरानी है । उदाहरण के लिए ईसा से उठी शताब्दी पूर्व गौतम बुद्ध और उनके अनुयायियों के बीच स्त्रियों का भिक्षुणी बनने या न बनने देने से सम्बन्धित बहस चली थी। बुद्ध ने यह कह कर इंकार कर दिया की अभी संघ में औरतों को शामिल करने का वक्त नहीं आया है । गौतमी, बुद्ध के साथी आनंद के पास गई। उनसे तर्क किया कि जब पुरुषों को दीक्षा दी जा सकती है तो औरतों को क्यों नहीं ? आनंद के समझाने पर बुद्ध ने अपने वरिष्ठ भिक्षुओं से विचार-विमर्श करने के बाद औरतों को दीक्षा देना मंजूर किया, मगर उन्हें पुरुष भिक्षुओं से निचला दर्जा दिया गया । आज २५०० वर्षों बाद भी कुछ धर्मों में स्त्रियों को समानाधिकार नहीं हैं । इस हकीकत के अनुसार गौतमी का यह संघर्ष एक सक्रिय नारीवादी कदम था जिससे धर्म में औरतों के दर्जे में बुनियादी बदलाव आया । तब से अब तक काफी पुरुषों और स्त्रियों (जैसे - मीरा बाई, रानी लक्ष्मीबाई, रजिया सुल्तान, रूकैया बेगम, राजा राममोहनराय, सावित्री फुले व ज्योतिबा फुले) ने पितृसत्तात्मक मापदण्डों को चुनौती दी है। हमारी राय में नारीवाद को बाहरी विचारधारा कहना हमारी अज्ञानता दर्शाता है और हमारी उस संस्कृति को अपमानित करता है, जो सदियों से पितृसत्तात्मक सोच और ढांचों

Page Navigation
1 ... 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130