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बौद्ध और जैनदर्शन के विविध आयाम
रोके अने क्यम परिजनो ? मातनां अश्रुबिंदु ? हैये जेने जगतभरनी वेदनानो हुताश ? बांधे ने क्यम तनय के पत्नीनो स्नेहपाश ? रत्ने राज्ये विभव मही शें अनुं रोकाय ध्यान व्हालुं जेने जनहृदयना राजवी केरुं स्थान ? है जेने पुनित प्रगटयुं विश्वकारुण्यगान ?
युद्ध के आतंक से त्रस्त समाजमें शांति की पुनस्थापनाके लिये उमाशंकर जोषी 'बारणे बारणे बुद्ध' के दर्शन के लिये उत्सुक बनते हैं । तो अति आधुनिक समय में निज युद्ध की वृत्ति के प्रति विरल उपेक्षा का भावने यशवंत त्रिवेदी के काव्य में अभिव्यक्ति पाई है ।
आज सारे विश्व के लोग जब रौद्र स्वार्थमें निमग्न है तब श्री रमणलाल देसाईने तथा कथित अहिंसा और विश्वव्यापी मानवप्रेम की ओर इस तरह अंगुलीनिर्देश किया है - 'मानवीने युद्ध न शोभे-', 'जगतमांथी वेर, झेर, क्रोध के खून अदृश्य थवां ज जोईओ, सर्जनमां संहार न होय - ' तथा 'आखुं जंगत मित्र बने-' .... ! 'क्षितिज' नवलकथा में 'सारे जगत को बौद्ध धर्म का स्वीकार करना चाहिये- औसा स्पष्ट सूचन उन्होंने किया है; बौद्ध धर्म का मार्ग अर्थात् अकमेव अहिंसामय धर्म, अर्थात् परम शान्ति, निर्वाण के मार्ग पर सहजभावसे प्रयाण - ' !
बौद्ध धर्म की इस मंगलमयता को परिचय देने के साथ नवलकथाकारने महा समर्थ बौद्ध तान्त्रिक विश्वघोष के आलेखन द्वारा इस धर्म की अवनतिकी ओर भी ईशारा किया है ।
राष्ट्रव्यापी अहिंसक स्वातंत्र्यलडत द्वारा गांधीजीने सारे मानवसमाज को जागृत कीया । शांति एवं, प्रेमभाव का मूल्य साहित्य द्वारा भी समाज में व्यापक होने लगा । श्री रमणलाल देसाईने 'प्रलय' नवलकथा में युद्ध की भयंकर विनाशकताका तादृश निरूपण कर के युद्धविराम की अनिवार्यता प्रति निर्देश किया। 'ग्रमलक्ष्मी' में कथानायक अश्विन प्रेम और विश्वास से महेरू जैसे निमना बहारवटिया का हृदयपरिवर्तन करता है । 'भरिलो अग्नि' नवलकथासे कथा के मुख्य पात्र रुद्रदत्त की ओक ही आकांक्षा है - "दुनियाने शस्त्ररहित करवी, अथवा दुनियामांथी चाल्या जवुं" - उनका एक मित्र ही उन पर गोली चलाता है । मृत्यु उनके सामने आ जानी है तव वे अपने शस्त्रास्त्र के उपयोग में निपुण सशक्त युवान शिष्य से कहते हैं- "दीकरा, पण तेर के कोई दिवस हथियार न झालबुं" - 'अवेर रो ही वरेका