Book Title: Bauddh aur Jain Darshan ke Vividh Aayam
Author(s): Niranjana Vora
Publisher: Niranjana Vora

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Page 49
________________ ४२ करने में स्वतः ही समर्थ रहे हैं । बौद्ध और जैनदर्शन के विविध आयाम. 'प्रभो जन्मे जन्मे कर धरी कई शस्त्र ऊतर्या, नखाग्रे दंताग्रे दमन करियुं शब्द छलथी, सज्युं के कोदण्ड, ग्रही परशु चक्रे चित्त धर्यु, तमे आ जन्मे तो नयनरस लेई अवतर्या. ' 'त्रिमूर्ति' काव्य में बुद्ध के जीवनदर्शन का और लोकसंग्रहार्थ समर्पित जीवन का अहोभाव पूर्ण निरूपण है : धरी आ जन्मेथी प्रणयरसदीक्षा, तडफतुं . हतुं जे संतापे जगत दुखियुं, क्लिन्न रहेतुं लई गोदे भायुं हृदयरसनी हूंफ महींने वद्या 'शांति' व्हालां, रुदन नहि बुद्धी दुःख तणी. प्रबोद्या धैर्ये ते विरल सुखमंत्रो, जग निवार्युं हिंसाथी, कुटिल व्यवहारे सरळता प्रचारी........ प्रभो तारा मंत्रो प्रगट बनता जे युगे युगे, अहिंसा केरो आ प्रथम प्रगटयो मंत्र जगते । सम्मन्तीध" - वेरसे वेर का शमन कभी नहि हो सकता आज जब चारों और युद्ध का आतंक छा गया है तब "नहि वेरेन वेरानि "अवेरेन च सम्मन्ती" अवेरसे ही वेरका शमन होता है - यह बुद्ध का उपदेश सबको यथार्थ अनुभूत होने लगा है । प्रत्येक युगने उनके अहिंसा और मैत्रीभावना के मंत्रको याद किया है । मानवजीवन के दुःख के नाश के लिये भी उन्होंने मार्ग बताया तृष्णा का नाश और मन की शांति ! - श्री सुंदरजी बेटाइ ने 'सिद्धार्थनुं स्वप्न', 'शस्त्रसंन्यास' आदि काव्य दिये हैं । हरिश्चंद्र भट्ट के काव्य - 'बुद्धनुं चित्र दोरतो अजंतानो कलाकार' में बुद्ध के करुणासभर नेत्र मूर्तिमंत हो उठे 1 - शाक्य राजपुत्र सिद्धार्थ से तथागत बुद्ध बनकर उन्होंने जगत के कल्याण के लिये जीवन समर्पित किया । कवि जशभाई पटेलने उनके प्रेम और अहिंसा के सिद्धान्त को 'भगवान बुद्ध' काव्य में निरुपत किया है। आज बार बार जब चारों

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