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बौद्ध तत्त्वमीमांसा : हीनयान संप्रदाय के अनुलक्ष्य में ..
गौतम बुद्ध के महापरिनिर्वाण के बाद बौद्ध धर्म अनेक संप्रदायों में विभाजित हुआ । अन्य संप्रदायों के बजाय हीनयान और महायान संप्रदाय का ज्यादा प्रभाव रहा । इनके चार भिन्न भिन्न संप्रदाय हो गये और इन सभी ने विश्व के पदार्थों की 'सत्ता' के संबंध में अपने विचार प्रकट किये । हीनयान की दो शाखाएं हुइ - वैभाषिक' तथा 'सौत्रांन्तिक' । बुद्ध के महापरिनिर्वाण के पश्चात् तीसरी सदी में वैभाषिक मत तथा चौथीसंदी में सौत्रांन्तिक मत ज्यादा प्रचलित हुए । महायान की भी दो शाखाएं हुईं - योगाचार या विज्ञानवाद और माध्यमिक या शून्यवाद ।
. गौतम बुद्धने आत्मा, परमात्मा तथा सृष्टि की संरचना - आदि प्रश्नों की समीक्षा - सामान्य जनसमुदाय की दुःखमुक्ति के संदर्भ में अनावश्यक समझकर, . उसके प्रति मौन धारण किया। उन्होंने चार आर्य सत्य और प्रतीत्य समुत्पाद का प्रतिपादन किया । अनीश्वरवाद और आनात्मवाद के साथ क्षणभंगवाद का भी प्रतिबोध दिया। उनकी दृष्टि से कोई भी वस्तु नित्य नहीं है, संसार का प्रत्येक पदार्थ क्षणिक
है, क्षण क्षण परिवर्तनशील है। . . . बौद्ध संप्रदाय में अनेक रूप से मतों की विभिन्नता है, लेकिन चार
आर्यसत्य और प्रतीत्य समुत्पाद के सिद्धांतो का सबने स्वीकार किया है । गौतम बुद्धने आध्यात्मिक प्रश्नों को अव्याकृत कह कर उनकी समीक्षा नहि की, परंतु बाद में जितने बौद्ध संप्रदाय हुए, उनके विद्वान आचार्यों ने जीव, जगत, इश्वर, सृष्टि, आत्मा-परमात्मा के संबंध में अपने अपने विचार प्रकट किये । हीनयान अथवा स्थविरवाद :
उसके दो संप्रदाय वैभाषिक तथा सौत्रांन्तिक हुए । गौतम बुद्ध के उपदेश के अनुसार, तत्त्वविचार की दृष्टि से उसकी मूल भित्ती पंच स्कंध और प्रतीत्यसमुत्पाद . (कार्य-कारण) का नियम है । पंच स्कंध में रूप स्थूल और चित्त-चैतसिक सूक्ष्म
है। ये पाँच स्कंध क्षणिक और नित्य परिवर्तनशील है। इनमें नित्य और फूटस्थ