Book Title: Bauddh aur Jain Darshan ke Vividh Aayam
Author(s): Niranjana Vora
Publisher: Niranjana Vora
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विशुद्धिमग्ग : बौद्ध धर्म का विश्वकोश
आचार्य बुद्धघोष विरचित 'विशुद्धिमग्ग' - 'विशुद्धि मार्ग' पालि साहित्य का अमूल्य ग्रंथरत्न है । भारतीय दार्शनिक साहित्य में भी उसका महत्त्वपूर्ण स्थान है । बौद्ध धर्म के विविध सिद्धांतो के बारे में गहन चिन्तन करके उनका सुष्ठ ढंग से विशद परिचय दिया है। उन्होंने विशुद्धिमग्ग में गौतम बुद्ध के उपदेश वचनों की विशद रूप से व्याख्या की है । इस ग्रंथ में बौद्ध दर्शन का इतना सांगोपांग और समग्रलक्षी निदर्शन हुआ है कि उसे 'बौद्ध धर्म का विश्वकोश' कहा जाता है। ग्रंथ कर्ता: .. . जैसे हम जानते हैं विशुद्धिमग्ग के रचयिता आचार्य बुद्धघोष है। उनके जीवन विषयक जानकारी चूलवंस, बुद्धघोसुप्पत्ति, गंधवंस, सासनवंस और सद्धम्मसंगह से प्राप्त होती. है । उनका जन्म ब्राह्मण कुटुंब में हुआ था और बाल्यावस्था से ही शिल्प और तीनों वेदों में पारंगत होकर अनेक विद्वानो से शास्त्रार्थ करते रहते थे। बौद्ध आचार्य रेवत के साथ चर्चा में पराजित होने के बाद वे बौद्ध धर्म में प्रवजित हुए। उनकी आवाज तथागत के जैसी धीर-गम्भीर होने से उन्हें बुद्धघोष कहते थे। उनका समय ई.स. की चौथी-पाचवी शताब्दी का माना जाता है। - बुद्धघोष पालि साहित्य के युगविधायक है । गुरु-आज्ञा से सिलोन जा कर उन्होंने सिंहली अट्ठकथा और अन्य साहित्य का पालि में अनुवाद किया । 'विशुद्धिमग्ग' के उपरांत त्रिपिटक के सभी ग्रंथों के विषय में उन्होंने अट्ठकथा - अर्थकथाओ की रचना की। इससे यहा अर्थकथा-साहित्य की परंपरा का प्रारंभ हुआ। उनके साहित्य में बुद्ध के उपदेश वचनों का गहन, सूक्ष्म चिंतन से युक्त, सदृष्टांत निरूपण हुआ है। इनके ग्रंथों में बुद्धकालीन समाज और जीवन का तथा अपने युग का जीवंत चित्रण है, अतः संस्कृति के अभ्यास की दृष्टि से भी उसका नीज़ी महत्त्व है।

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