Book Title: Bauddh aur Jain Darshan ke Vividh Aayam Author(s): Niranjana Vora Publisher: Niranjana Vora View full book textPage 8
________________ बौद्ध धर्मशासन और पर्यावरण संरक्षण (प्रकृति और मानवीय मूल्यों का परस्परावलंबन) पर्यावरण का प्रदूषण आज की वैश्विक समस्या है । सांप्रत समय की उपभोक्तावादी संस्कृति में प्रकृति के तत्त्वों का स्वच्छंद रूप से उपयोग हो रहा है। मनुष्य अपनी क्षुल्लक वृत्तियों - वासनाओं की तृप्ति के लिए प्राकृतिक तत्त्वों का मनचाहे ढंग से उपभोग और विनाश कर रहा है। इससे पृथ्वी, जल, वायु, वनस्पति, तेज (अग्नितत्त्व)में एक प्रकार की रिक्तता और विकृति भी उत्पन्न होती जा रही है। विशाल परिप्रेक्ष्यमें पर्यावरण समग्र सजीव सृष्टि और मानवजाति के अस्तित्व का प्रश्न है। आज हमें चकाचौंध करनेवाले आर्थिक और भौतिक विकास के मार्ग में सबसे बड़ा प्रश्नार्थचिह्न है पर्यावरण का । विज्ञान की शक्ति के सहारे उपभोग की अमर्यादित सामग्री उत्पन्न होती जा रही है। मनुष्य सुख ही सुख के स्वप्नों में विहरता है। लेकिन इस साधनसामग्री के अमर्यादित और असंयत उपभोगने हमें पर्यावरण के बहुत बडे प्रश्नार्थ चिह्न के सामने खड़ा कर दिये हैं। हमारे ऋषिमुनि-प्रबोधित आचारसंहिता की दृष्टि से भी पर्यावरण की समतुला .. की समस्या आसानी से हल हो सकती है । बौद्ध धर्म में पर्यावरण - संरक्षा और शुद्धि की समस्या का निरूपण दो प्रकार से हुआ है : (१) जीवन जीने के तरीके ऐसे हो कि जिससे प्राकृतिक तत्त्वों का विनाश न हो तथा दूषित भी न हो । (२) क्रोधादि कषायों से मुक्ति तथा अहिंसा, मैत्री, करुणा जैसी भावनाओं की परिपूर्णता । अहिंसक आचार-विचार और प्रकृति के तत्त्वों की सुरक्षा : .. गौतम बुद्ध के वचनों में प्राकृतिक परिवेश का बार बार परिचय मिलता रहताPage Navigation
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