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बाई भजीतमति एवं उसके समकालीन कवि
मोती रतम पार भरि लाए, सब मिलि बोरवपन पै गए । बाई भैरता माने परी, नाह सीस विनती है करी ॥१४॥
याकी, कौहू, गरो, जा देख १५०/१५) वाको (७३/१६) जैसे शब्दों को अधिकता है। काप्य की विशेषताएं
श्रीपाल एवं ममासुन्दरी पर हिन्दी में अब तक जितने भी काय लिले गये
प्रस्तुः कामी निको हतर है। मापा एवं वर्णन भोली दोनों ही आकर्षक है। कवि ने नायक, नायिका एवं उपमायिकानों के जीवन में घटने वाली घटनामों का रस वर्णन किया है। कवि की बर्णन शैली से काव्य के सभी पात्रों का परिष विकसित हुमा है सपा पाठकों में उनके प्रति सहानुभूति, करुणा अथवा रोष के भाव जाग्रत होते हैं।
काव्य का नायक श्रीपाश है जो कोटिभट है। मसंम्प योवानों की शक्ति का प्रतीक है। विपत्तियों एवं संकटों के सामने यह कभी हार नहीं मानता है किन्तु अपनी शक्ति, साहस एवं सूझबूत से उन सभी पर विजय प्राप्त करता है । वह युवावस्था में ही राण शासन चलाता है लेकिन कुछ ही समय के पश्चात् वह भयंकर कुष्ट रोग से पीड़ित हो जाता है । यह कुष्ट रोग उसके सात मी प्रेग रक्षकों के भी हो जाता है । खाना, पीना, उठना, बैठना, नहाना, घोना, वस्त्र पहिनना आदि सभी सभी क्रियायें दूसरों द्वारा की जाती है। संघ एवं पीप की दुर्गन्ध से साग वाताबरग वर्गन्धमम रम जाता है। नाक एवं मंगुलियां गिरने लग जाती है। कवि ने कुष्ट रोग योहा का बहुत प्रथा वर्णन किया है
बई राध पीडियो पसेर, होई गया पात समीर । कोत उबमर बदमो प्रति राई, नामि अंगुरी गरि गए पाई ।।१२१॥ रक्तपीत जात बोत, हार चोर राई में सीस। मर सेव या सौ गई, देह बाब मण्डारी ॥१२२॥ स्थाम दाप जाकै असमान, सो गणो हि सवा पान । मरबन करें नाहि गही काम, खवासारवार्य माना ॥१२॥
श्रीपाल राजा ये गिकिन प्रजानरमल थे। अपमे पुण्ट रोग के कारण जब प्रजा को दुख होने लगा, नगर दुर्गन्ध से भर गया, तथा उनका खाना पीना हराम हो गया तब मस्त्रियों ने राजा में विस्तार पूर्वक प्रजा की व्यथा बतलायी। तत्काल श्रीपाल ने कृष्ट रोग से मुक्ति पाने तक राज्य का समस्त भार पपने चाचा वीर