Book Title: Bai Ajitmati aur Uske Samkalin Kavi
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
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२६
यशोधर रास.
जय जीवंत तू देव । वीर जिन जगदीपवर ए॥ विक्रम पेवेन्द्र करि सेव । जय जय देव नुत इम उचरि ए ॥६९)
वस्तु इन्द्र भारती इन्द्र भारती कीष उदार । भवतणी प्रारती मंजती रंजती भवीया चीत्त दीठीय ॥ सुरित तिमिर निवारती। बंदी सुर नरें अती गरीबीय ।। हरखीत घणिक नृप तदा । जिन गणपर नमी पाय ॥ चेलणा तथा परिवार सूमाव्यो निजपुर ठाम ||१||
मास साहेलडी नी। राग घुस धन्यासी ।।
प्रशस्ति
नव सहस बेस सदा भलो । साहेलडीए । हाम ठोम बह गाम ॥ नयर पुर पाटन घणा साहेलडीए । खेढा द्रोण सुनाम ।।१।। धन करण कणय रमणे भरा ।स। गोधन तणो नही पार तो ॥ महिखी मोटी दीसि घणी साला दूथ छि तेहनो फारतो ।।२।। कनक भाजन मोइ मेहेली ।सा०। दोहता होइ धार नादतो ।। पंखीया बासि पामि साग मोर नाचि सुणे सादतो ॥३॥ सालक्षेत्र सौहि घणां ।सा। सूढा साद सोहत तो ॥ परीमल दही दश बिस्तरे सा र झरण भमरा करंस तो ॥४॥ अनेक धान्य क्षेत्र भला ।सा गीरी समा पाम्य अंबार तो॥ ओबां बन विविध परी ।सा । ठाम ठाम वन विस्तार तो ॥शा नदी कुत्रा व्यावधनी सा। सरोवर भरयां अपार तो।।
कमल राता नीलो नीलो ऊजला ।सा भमर तणा गुंजार तो ॥६॥ महा नगर वर्णन
तेह देस माहि सोहि सा महमा नयरी बसंत तो ।। धन करण काय रतने भरी ।सा | माहाजन बसय महल ती ॥७॥ ब्राह्मण वेदने मभ्यासे ।सान नाहि पूर्णा नवी माहितो । भवर वरण घणा वसि ।सा नित नित होइय उछाह तो ॥८॥ मोटा मंदिर मालीयो ।सात तोरण भादि बह सोभतो ।। मेडी गुखने जालीया ।सा कहो नहीं तस शोभतो ॥६॥

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