Book Title: Bai Ajitmati aur Uske Samkalin Kavi
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur

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Page 325
________________ ३०० यशोषर राप्त बीस मो जीन जगितीलो साग पास विधन हर नाम तो।। वाराणसी पुरी वीस्वेसन प्रभु सा० बाझो जनम्यो प्रभीराम तो ।।२।। नीलवरण तनु नव हस्त सा० सुरनर रचीत कल्याण तो ।। भरणेन परमावती पूजीयो ।साल। जेह नामि होय कल्याण सो ।।२६।। नागलछिन नवनिधी पूरें ।सा। चूरि बीघनतमी रास तो ॥ डाकरणी साकिणी ध्यंतरा सा भूत भय जेह नामि पास तो ।।२।। पुत्र कलत्र मित्र संपदा साथ भवीयां पूरि प्रास तो ।। कवि देवेंद्र प्रजीयो सा। अयो जिन विधनहर पास तो ।।२।। जिन सासन रक्षा करो सा०1 जया जायो श्री क्षेत्रपाल तो 11 नागो नाग विभूषण तो सा०हाथि इमर जटाल तो ।।२।। धूपरी पायें धमधमे सान नेउर रमझमकार तो ॥ मारणीभत्र परी मदचूरी ।सा०। संघनि करो जयकार तो ॥३०॥ मटारक परम्परा मूलसंघ सरसती मछ |सा | बलातकार गण अभिराम तो ।। पवमनंव गुरु गछपती ।सा। देवेंद्रकीरती गुण ठामतो ॥३१॥ विशम वि विचानीलो।सा तस पाटि सोहि नीधान तो ॥ मल्लिभूषण महीमा भलो सा०। मानीयो जेह सुलतान वो ॥३२।। ललित अंग लखमीची सात तेहपारि जलनीधी चन्द्र तो ।। तप सेगे करी सोहीयो ।हा। बोरचं सुमुनीत तो ।।३३।। लाडवंस सोभा का सा तेह पटि सार सरपगार तो ।। सानभूषण जाने भलो ।सा०। प्रभिनवो गोयम अवतार तो ॥३३॥ सुमतिकीरती सूरी प्राचार्य ।सा। सेबयो गेह मनुदीन तो ।। रस्ममूषण सूरी बरि स्तव्यो । सामानमूषण सूरी धन्य तो ॥३४॥१ सेह पाटि पुरंधर सारा वीप्ता हूंबड वंसतो ॥ प्रभाछ महीचादलो सा। ज्ञान सरोबर हंस तो ।।३।। कल्यारण कीरती पाषाय ।साल। सेक्यो ह सुभ मन तो। माविराण ब्रह्म स्तम्पो सा०। प्रभार धन धन तो ।।३।। तेह पाट उदयाचल सूर सात मिथ्यावादी मदचूर तो ।। पारिचा वादिस्वर सा०। दीठडि होई पारद तो ।।३७।।

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