Book Title: Bai Ajitmati aur Uske Samkalin Kavi
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur

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Page 291
________________ बाई जिनमती एवं उसके समकालीन कवि माननीसूं मननी रली तो । भ० धरमि लीला विलास तो ॥ पकवान बहुजात तु ॥ भ० हा प्रश्न अनेक प्रकार तु ।। ३६ ।। भोजन सजाई भोजन शक्ति तो 1० 1 दधि दूष घृत सुविचार तु ॥ तो रास कपुर नाग बेल दल तो भ० । फोफस एलबी लवंग तो ॥ ३७ ॥ ए आदि भोग उपभोग तो भ० धरम फलि उत्तंग |०||३८|| वस्तु छम्छ धरम ना फल धरमनां फल । तरारे विस्तार | भव भव जीव सुख लहि । दुःख लेस एक क्षण न पानि || दूर देसतिर पावतो । धरम एक सखाय माथि | जल गिरि र यन मांहि पडयो | जीवनें रात्रि धर्म ॥ इस जारी धर्ममाचरो र मुको पाप कर्म ||१|| मास जीषडानी राग देशाख — पथ के कारण विभिन्न गतियों में भ्रमरण पापतरं फल भब बने हो । जीव भमें अपार दुःख सहि श्रीहो गती माहि हो । सुख न पावि लगार हो ।। पायें दुःख दालीद्र सहि हो । भव माहि भमतो जोय हो ||१|| जीवदा नोत्य निगोद सात लाख कही हो । इत्थर निगाँव तेनी हीय फूल कंद मूल माहि हो । जीव भमतो जोय हो० ॥ नील पाप तणां फल होय । पायें दुःख दाली सहि होय । हो० ॥ माहि भ्रमती जोप हो० ||२||जीवडा ।। भद्य मांस सरीर माहि हो । कंद मूल मांहि जेह फूल फल छाल पहलब हो । नीगोदे भभ्यो जीव एह हो ||३|| गात लाख पृथ्वी काय हो । मृदु खर पृथ्वीभेद । गेरु गौरी मांटी सीला हो । जीव अपनो ललो खेद हो जी० ॥४ २६७ सात लाख अपकाय मांहि होय हो० । जीव अनंती बार । नयी सायर सरोवर कूश्रा हो । उपनो एद्द मकार । हो जी०५।। तेजकायक साल लाख कला हो । अगनी काम उपन || काल अनंत जीव भमतो हो । कहीं नहीं सुख संपन | हो श्री० ॥ ६ ॥

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