Book Title: Bai Ajitmati aur Uske Samkalin Kavi
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur

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Page 308
________________ २८४ कल्मा मित्र प्रति बोल तो जी। मिकीधा बहू पाप के ।। जलचर नभचर यलवर जी यशोधर रास हराया कोष संताप के || ३० ॥ राय० से पातिक हति छेद सु जी I ले संजम योर के ।। तनु मव भोग विरक्त हवो जी दुर्धर तप करी घोर के ||३१|| राय ० इन्द्रिय चोर के | दुर्घर तप करी घीर के ॥३२शाराय ० धू मन ए पिर के ।। मयण मान मर्दन करू जी । कल्याणमित्रनि वली का जी । कूअर ने देजो राज के ||३३|| राय • दु:फर्म विरीजी पसूजी जीकू तनु भव भोग विरक्त हवो जी। अहिछत्र राय के नरसू भरी नी । करजो वेद्देवांनू काज के || नोज हाथि वेयो राज के ||३४|| राय वल कल्याण भित्र बर्दि जी I परजानां सरि काज के || यम कूं भरने राज भोगपडिजी राजापि राज स्वस्त होइ जी । स्वस्ति मुनी तथा योग के ||३५|| राय० सोनचि चम योग के || स्वस्ति सहू शास्भ सांभाल जी राए तेह बोल मानीयो जी । तब जाणू नगरी मझार के || ३६|| राय : सोमती के वैराग्य साथ से चारों और चिता जसोमती राय वैराग्य हवी जी | तब ह हाहाकार के 11 I तय अंतेजर खल भल्यू जी मोती प्रोतीतिम रह्यो जी एक असे मूल जोती जी एक अंजन करि घरधो जी । वेगुलि कम मह धाय के || एक वेणी गंथती जी । एक ते पीठी लायके ||३६|| राय० एक कताबसी जाय के ।। ३७।। राय ० ते पण वन मांहि चाय के ॥ एक सागारती काय के ||३८|| राय ० एक हार पिहिखा करि धरयो जी । वेगुलिवन मांहि घायके ।। एक सिंहिधी सीरे रोपती जी एक करि तिलक बराय के ||४०|| राय एक फूली करिग्रही जी । वेगुलि वन मोहि चाय के ॥ एक चंदन तनु लायती जी । कंचोली हाथि सेवायें के ११४१|| राय एक भोजन थाल स्मजी जी । वेगुलि बन माहि वायके एक प्रधुरे पान बीडी धरी जी । अधुरी छि मुख ठायके ॥ ४२ ॥ राय • वीर पहिरो बोली बोसरी जी बेगुलि वन मांहि घाय के ।। एक अवलिं खीर पिहितीजी । एक घाटडी वीसराय के ॥४३॥ राय

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