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कल्मा मित्र प्रति बोल तो जी। मिकीधा बहू पाप के ।।
जलचर नभचर यलवर जी
यशोधर रास
हराया कोष संताप के || ३० ॥ राय०
से पातिक हति छेद सु जी
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ले संजम योर के ।।
तनु मव भोग विरक्त हवो जी
दुर्धर तप करी घोर के ||३१|| राय ० इन्द्रिय चोर के |
दुर्घर तप करी घीर के ॥३२शाराय ० धू मन ए पिर के ।।
मयण मान मर्दन करू जी । कल्याणमित्रनि वली का जी । कूअर ने देजो राज के ||३३|| राय •
दु:फर्म विरीजी पसूजी जीकू तनु भव भोग विरक्त हवो जी।
अहिछत्र राय के नरसू भरी नी । करजो वेद्देवांनू काज के || नोज हाथि वेयो राज के ||३४|| राय
वल कल्याण भित्र बर्दि जी
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परजानां सरि काज के ||
यम कूं भरने राज भोगपडिजी राजापि राज स्वस्त होइ जी
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स्वस्ति मुनी तथा योग के ||३५|| राय० सोनचि चम योग के ||
स्वस्ति सहू शास्भ सांभाल जी
राए तेह बोल मानीयो जी । तब जाणू नगरी मझार के || ३६|| राय
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सोमती के वैराग्य साथ से चारों और चिता
जसोमती राय वैराग्य हवी जी | तब ह हाहाकार के 11
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तय अंतेजर खल भल्यू जी मोती प्रोतीतिम रह्यो जी एक असे मूल जोती जी एक अंजन करि घरधो जी । वेगुलि कम मह धाय के || एक वेणी गंथती जी । एक ते पीठी लायके ||३६|| राय०
एक कताबसी जाय के ।। ३७।। राय ० ते पण वन मांहि चाय के ॥ एक सागारती काय के ||३८|| राय ०
एक हार पिहिखा करि धरयो जी । वेगुलिवन मांहि घायके ।। एक सिंहिधी सीरे रोपती जी एक करि तिलक बराय के ||४०|| राय
एक फूली करिग्रही जी । वेगुलि वन मोहि चाय के ॥
एक चंदन तनु लायती जी । कंचोली हाथि सेवायें के ११४१|| राय
एक भोजन थाल स्मजी जी । वेगुलि बन माहि वायके एक प्रधुरे पान बीडी धरी जी । अधुरी छि मुख ठायके ॥ ४२ ॥ राय • वीर पहिरो बोली बोसरी जी बेगुलि वन मांहि घाय के ।। एक अवलिं खीर पिहितीजी । एक घाटडी वीसराय के ॥४३॥ राय