________________
बाई अजीतमति एवं उसके समकालीन कवि
२८५
अंवोटो शूटि बेगी ललि जी । बेगुलि वन माहि पाय के एक ते घसमसी चालती जी ! परती काय काय के ॥४॥राय. एक के.थी मेखला पडि जी 1 गुलियन मांहि घाय के 1. एक वीछीया नीसरी पडि जी । एक धूपरा छुटी जाय के ॥४॥राय एक मूडी करि थी पडि जी । वेगुलि वन माहि धाम के । एक मोती हार रातो जो । एक फिर नोय ॥ एक वेणी पाछाहती जी । वेगलि वन मांहि षाय के॥ एक मही पगि खूचती जी । एकते सास भराय के ।।४७॥राय एक विलाप करतही जी। गुलि वन मोहि धाय के ।। नयन काजल जलि चोली तणा जी । मोती हस काला थाय के ॥४८॥ एक नाहना गुण बोलती जी । वेगुलि वन माहि धायके ।। एक प्रसूपि चोली भीजती जी । सेऊ कांबली जगाय के ।।४६॥ नपण नीर करी नाहती जी। बेगुलि बन मांहि धायके । कुसुमावली राणी वीनवती जी । सुगो जसोमती राय के ।।५।। तप फलि स्वर्ग पामी जी । तेरिण ता कंस काज के । नयरी अमरावती समी जी। हूं तो परस्पक्ष इंद्र के ||५१॥ राय हं इंद्राणी प्रपछरा जी । राणी केरोद के॥ वली योवन रस लीजियिनी । राज भोगो मन रंग के ॥५शाराय० कोथु मात्रम तप करूजी । दीक्षा लीउ उत्तंग के। चूना चंदन नव्य गर्मि जी ! मन भमि मह्म तुम पास के १५३।। सय. मह्मने एकला नथ्य मूकीयि जी। कीजीयि लील बीलास के ।। फूलहार अंगार समा जी । भूषण तम दिण भार के ॥५४ाराव मयण दावानल तनु दहि जी । दहीवली चंद्र अपार ।। तह्म विण सूनी सेजडी जी । गोठडी कोणसू पाय के ॥५५शारायः किम छांडो एबी प्रीतडी जी । ब्रह्म तह्म विण नर वाय के । पविन्द्री पखदु होथि राणी । तिहा जलगरण रुडू जाणीइ जी ।।५६||राय जब जरा दूरे जैथ के । राय कहि र.सी सुणो जी ।। ज्यांही तनु रोग न संभदि जी । ज्यांही नव्य खूटि प्राय के | राया पात्महित ते टालि करो जी। पाछि काइय न पाय के ॥ पर जबलागू बार पकी जी। मांड्यो जसवबा उपाय के ।।५८॥राय.