Book Title: Bai Ajitmati aur Uske Samkalin Kavi
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur

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Page 307
________________ वाई अजितमती एवं उसके समकालिन कवि २०३ पापि पापजि वाथयो जी । सुणो जसोमती भूप के ।। माय बेटा बिर बिस्त रथ जी । संसार दुःखनो कूप ।। १७शारायः माछामि तम ने भेट घरयो जी । जे-रोहीत विख्यात । अमृता ए जे तेल माहि तल्यो जी । ते सही जाण्यो ता तात ॥१८॥ सीसु मार जेणी कुबडी हणी जी। नृत्यकी नायती सार के ॥ माछीतही सेमारथ जी । ताती बेल समार के ॥१६॥राय. होतां वीरज पोति ताहा हवो जी । संसार त् हबो विचीत्र के ॥ तह्म खाली हरणी तिहाँ । तल पिता जी । पोति पीता पोति पुत्र के । २०। राय छाली मरी महिस हवो जी । तर अश्व हणो ण के ।। प्रजोनी संभब छाग सह्म पिताजी । दुःखी हदो जाग होण के ।।२१।। राय महिष मारघो वाल्यो चन्द्रमतो जीवजी । छाग बाल्यो पिर तण के ।। छाग महिख साथि मूग्रा जी । कूकडां हां पापेग ।।२२।।राय बन क्रीडा तो प्रावया जी । वन सोधी कोट चाल के ।। मझसू बाद करतडा जी । प्रतियोषायो बिसाल के ।। २३५॥ कूको तब भव सांभल्या जी । मुझ बचन थी सार के ।। कोटवालें सार्थ दूत सीयो जी । हरखें बासां ते वार के ।।३४।। कूमावली सूखोलतज्ज्ञां जी । मुफ्यू शब्द बेंष बाग के ।। युसुमावली गर्भ जोडि अवतरयां जी । कुकड़े मुक्ति प्राए के ।।२५शारायः अभयमती अभयरुची जी । रूप सोभाग अपार के ।। मिथ्या पाप तरिय फलि जी। इम बांध्मी संसार के ॥२६॥राया अमृतायि पाप करयो घणं जी । नाह मारपी देई विख के || मील न पाल्यो मिथ्या करो जी । पांच मे नरके पापी सीख के ।।२७।। राय. राजा का नशा राय मनें तव गहि वरयो जी । नयणे आंसू पायके ।। झरी झरी मापने नंद तो जीके । रा। थरथर कापि काय के ।।२८॥ माहारा मात्त पिता तणो जी । महारि हाथि व्यध कीध के ।। जीरिप हं पाल्यो पोठो करपो जी । तेहने में दु.ख वीध के ||२६।। रायः

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