Book Title: Bai Ajitmati aur Uske Samkalin Kavi
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur

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Page 319
________________ बाई भीनमति एवं उसके समकालीन कवि मुनीवर रुधी निधान । केवल ज्ञानादि जब लगिए । प्रगदि धर्म विधान महा०||२४|| कर्म ही मुनी संत | शिव पद पामें जब पनि ए६ ॥ अनंत सौख्य महन्त | महा०||२५|| चक्रवर्ती नामि जुत्त | वृषभात्रत्र नादि जब लगिए । योजन विस्तारें अदभूत |महा०|२६|| नीषानीलोपरि जारण रवि शशी उदय जब लगिए ।। ग्रह नक्षत्र सू बखारण | महा०||२७|| रवि शशी ग्रह नक्षत्र 1 मेरु प्रदक्षिण जब लगिए ।। करो दिन रात्रि विचित्र | महा० ॥ २८ ॥ त्याला नांदि जब लगिए ।। असंख्यात योतकलोक सुतां टलि सहू शोक | महा०|२६|| व्यंतर जे प्रसंख्यात । प्राठप्रकारि नादि जब लगिए ।। त्याला सुविख्यात | महा० ॥ ३० ॥ भवनवासी दस माख । चैत्याला सू नांदि जब लगिए । सात कोड बोहोत्तर साल | महा०||३१|| सुधर्म ईसान प्रादि होय । सोल सरग नांदि जब लगिए ।। कल्पवासी विमान जोय | महा०||३२|| प्रवेयक नवोत्तर | पंध्योत्तर नांदि जब लगिऐ ।। कल्पातीत भ्रमर | महा० ॥ ३३५ लाख चौरासी सहस्त्र | ससाण बेदीस संख्य जब लगिए । त्याला विमान वांस | महा० ।। ३४ । ९ ● मुगती शिलाची अंतरीक्ष । सिधावगाह नांदि जब लगिए ।। त्रिगुण त्रिव मलक्ष महा० ॥ ३५ ॥ वातवलय हु भेद । त्रिभुवन घरी रही जब लबिए ॥ चट् द्रव्ये भरयो भछेद | महा०||३६|| जिनभाषित दयामें । भबिकनें उधरि जब लगिए ।। सास्वतो मापे सर्म । महावीर नांदो तब लगिए । ३७|| इम वाणी स्ववी राय । श्रेणिक भागी हरष घणो ए ॥ महावीर पूजवा सुठाय । भ्रष्टप्रकारी सामग्री भयो ए ॥ २८॥ ex If

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