Book Title: Bai Ajitmati aur Uske Samkalin Kavi
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur

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Page 290
________________ यशोधर रास विद्याधर विद्या भली तु मन पर्मिचंद्र सूरय थाय तो ।। देवांगना नाटक रचि तु म०१ नारद किन्नर गुण गायतो ॥२१॥ कामदेव सरखं रूप तो । भ०, नारी मन मोहंत तो ।। रूप देखी देवो भूलि तु भ०। धरमि होइ भूप महंत तो ॥२२॥ सीर पर छत्र उजलो तो भला चमर ते गज प्रवगाह सु ।। गज तोरंगम रथ घरणा तु भि पराक्रम बय तरणो ठाह तो ।।२३॥ धमि सात खणा घर तु भा रतन तणी सोंहि भीत तु ॥ पन करण कयण रयणे भरथा तो भि। पट कोल वस्त्र वीधीत्र तो॥२४ धरमि नार सोहामणी तो भि.1 रूप रती अवतार तो ।। मुनीवर नां मन मोहती तो भ०। सोहंती सील भंडार तो ।।२।। ममती सासू नवंद ने लोभ गमती नाहने मने सो।। रीस न धरती रस भरी तो में हर व वा का तो॥ हंसगामिनी मृगलोचनी तो भ०। घरमिबह गुणवंती तो।। जीव तणं जतन करती तो भला कोमल वचन महंत तो ॥२७॥ निज कुलनि मजू पालती तो भि चालती लक्ष्मीय होय तो।। परत विधाननि पालती तु भ०। परम करती बोय तो ।।२।। दान देती सुपात्रनितु भ०। मानती सगा सजन तो।। जिनपूजा करती रंगे तो भ०। निरमल घरती मन तो ॥२६॥ प्रोहोणा सगानि संतोषती तु ।भ। चतुर पणानु ठाम तो ॥ भाग्यवंती विनयवंती तो भ०। कंतना पूरती काम तु ।।३।। पमि पुत्र भला होय तो भला मातपीतानि मानत तो ।। घरमवंत गुणि प्रागला तो भि० नपर्ने प्रारद देय सो ।।३१॥ धर्म पुत्री पामीयितो म०। रूप सोभागनी रेहतो । सीलवंती गुरिण प्रागली तु ।०1 विनय विवेकनो गैह तो ।।३।। मि मित्र भला सहित भन्। पाप यी मारय ह तो ।।। हीत मारगर्ने उदेसि तो ।। अगर अंबर प्रावि भोग सो।।३३॥ परम तणे फल पामीपि तो भला अनेक ईदनो संयोग तो 11 मरिण मारिएक मुगता फल तो भि। मोती नक्सर हार तो ||३४|| पालखी रथ सुखासन तो म। धरम तणो विस्तार तो। कनक सांकल हीदोलार भला तो 1भ०। हीदोलि हीदोलि दास तो।।३।।

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