Book Title: Bai Ajitmati aur Uske Samkalin Kavi
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur

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Page 296
________________ ૨૭૨ यशोधर रात प्रष्ट मूल गुण मद्य मोस मधुवर जीयि । बली पंचूकर परीत्याग ॥ पाठ मूल गुण एहने कहीयि । भावकनु ए मार्ग सा०।१३।। बारह वत अहिंसा त पहिलं कहीमि । बीनू सत्य वरतइ अम जाणरे ॥ अचोरीज व्रत पड़प 'मूक्यून चोरीजि । स्ववारा संतोष वसामो स.१४ परिग्रह परीमाण वली रोजे । रात्रि भोजन टालीजि ।। जीवदया आदि ती जागो । मणुनत एक पालीजि सा०।१५। दीगदरती देसवीरती अनरथ । दंडन्नती ए देषो । गुणव्रत त्रुहि गुणे वष पामे । संसार तारण लेखो ।सा॥१६॥ सामायक पदवें उपवास । भोग उपभोग संख्या ।। प्रतीभविभाग ए च्यार प्रकार | सीक्षावत मुभ सीक्षा सा॥१७॥ समकित सहीत बारि अस कहां । संलेखना तनु स्याग ।। दृतु मन करी ला ए पालो । सरग मुगती नु मार्ग सा॥१८॥ चंडकरमा बलतू इम बीमवि । ए सहू पाल सुजाण ॥ जीव दया पण नवि पलयेमे । होयि कुल धर्म हाए ।सा०।।१६।। बिकट खोटा चुरटा जे मोटा । निग्रह करु तेह करे ।। भली परीह नगरी ने राखें । कर कर्म छि महारो ।सा॥२०॥ मनी बोलिहजी तह्म मन करी । श्रोत ते काय न जाय ॥ कुलि पांगलो कोदो को व्यसनी । तिम भापणी सुथवाय ।सा०॥२१॥ वरली राजानो भय तह्म होसि । कूटभ भरण तणो मह । साधा काजि कुटंब सहू मलयू । दुःख सहिसि जीव बहू सामा२२॥ परता तहा निदृष्टा तज दाख । सांभलो मन पिर राखी ॥ जसोधर चन्द्रमती भव भमयां । ए कुकडा बेहूँ सासी ।सा॥२३॥ पीठ कूकडो हसायो देवी प्रागलि । ते पाप बहू लागो । अमृतामि जसोधर चन्द्रमती मारघ।। मोर कत्यस भव भय भागो ।सा.।२४ यशोधर एवं चन्द्रमती के जन्म तीहां थी मरी सिहिलो साप हवां बनी रोहीत मंसूमार || चानमती छानी वी । नेद्र गधि नाग नो पे वार साना२५॥

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