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श्रीपाल परित्र
गिरनार पर्वत पर तप, कैवल्य एवं निर्वाण कल्याणक का वर्णन किया गया है। १५वीं शताब्दि में आमेर के सांवला बाबा के मन्दिर में स्थित नेमिनाथ स्वामी की मूल नायक प्रतिमा अत्यधिक प्रसिद्ध एवं सतिशय युक्त मानी जाती थी। कवि ने जिसका निम्न प्रकार वर्णन किया है :
जाहि नाम लीया दुति कसी, गुबह पता :: पार है अंबावती प्रतिव्यंब, शोभिता स्याम वर्ण गहोर। . वन्दहु सुभ वियह नेमि जिरावरु, दोइ मट्ठ शरीरु ।।१।।
इस बन्दना में पांच छन्द हैं । कवि ने इस गीत में अपने मासको देल्ह तनय लिखा है।
३. वर्षमान गीत :
यह कवि का तीसरा ऐतिहासिक गीत है। इस गीत में कवि ने जयपुर से १२ किलो मीटर दक्षिण में स्थित प्राचीन नगर सांगानेर के संघी जी के मन्दिर में विराजमान महावीर स्वामी की स्तवम के रूप में भगवान महावीर..का माता पिता, गर्भ, तप कैवल्य एवं निर्धारण स्थान पावापुरी का उल्लेख किया है तथा गौतम मादि ग्यारह गणघरों का एवं अन्य घटनामों का वर्णन किया है। गीत में पांच छन्द हैं। सांगानेर में संधी जी के मन्दिर का निर्माण १२वीं पातादि में प्रा था । मन्दिर अपनी कला एवं शिखरों के लिए पूरे राजस्थान में प्रसिद्ध है।
४, मादि जिन गौत:
यह कवि का चौथा गीत है जिसमें प्रथम तीर्थकर भगवान मादिनाथ का का स्तवन कियागया है कवि ने टोडारायसिंह के दि.जैन मन्दिर प्रादिनाथ स्वामी की प्रतिमा को अपने युग में अत्यधिक महत्वपूर्ण गिनाया है। गीत के शेष भाग में इसी तरह कावरणंम है जैसे उक्त तीन तीर्थ करों के गीतों में वर्णन किया गया है।
इस प्रकार चारों ही गीलों में कवि ने स्थान विशेष के मन्दिरों में विराजमान प्रतिमानों का नामोल्लेख करके उनमें इतिहास का पुट दिया है। कवि का मुख्य निवास चम्पावती था लेकिन वहां के किसी मन्दिर की प्रतिमा का उस्लेख नहीं करके पाटन (केशोराय) आमेर, सांगानेर प टोडारायसिंह के मन्दिरों के महात्म्य का वर्णन किया है।
मावा---गीतों की भाषा अपभ्रंश प्रभावित राजस्थानी है। कृषि का मुख्य कार्य क्षेत्र बाद प्रदेश था इसलिये गीतों की भाषामें टूवारी भाषा का भी प्रयोग अधा है।