Book Title: Bai Ajitmati aur Uske Samkalin Kavi
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur

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Page 229
________________ बाई जीतमती एवं उनके समकालीन कवि हूँ बढयो पेली पोलि । प्रा० वालया दृष्ट अनेक तो । जोसो बैद विबुध जन || विनय सहीत सुवीवक तो ॥२॥ बीजी भौम्य सोहामणी | अर० नोल रतन तणी सार तो ॥ संगीत जारण बीलाबीया प्रा० गायकी यात्रय उदार तो ।। ३ ।। (प्रा० पीला रतन में जोयतो ।। सुरगतां हरष बहू हो तो ॥४॥ ू नोजी भोम्य क्षेत्र जंत्रधारणी जंत्र बाय 1प्र० चुश्री भोग्य उलास' मा रतनदीप झवकें वरपर प्रा स्याम रतन मय जातु ।। ऋटो सुणतोस वा तो ||५|| चढयो हूं सुरसालयो । राता जाणे परवालतो ||६|| २०५ ० राता रतन ती पांचमी यहां मोती ना भूलका | प्राol फटिकती छठ मही । प्रा० दोठी निज प्रतियो || जाओ एवति मरणोन माय तो ||७|| सातमी मही सोहो जली ! प्रा० पंचरतन मय चंग तो ॥ पंचवरण स्वस्तिक मला आol अनेक विश्रामरण रंग तो ॥ ना तीहां चघो रंग भरयो । प्रा० सही सहुए जय जय कोयो प्रा० श्रादमी भोम मनोरम (०२ उपर अनेक चित्रामतरे । भरघो दूवारको हाय तु ॥ तिहाथी चाल्यो राहू सरथ तो ॥६॥ रात रतन भीत मली श्रा० प्रमुख रतन मया ठाम तु ॥ १०॥ तिहरे चोहू समसी | मा० हसीत वदन हो जाए तु । जानीधान में पामी मा01 अथवा अमृत करवाए तो ।।११।। अमृतमती जाणे यूं | आता मंदिरे पारा राय तु ॥ घंटा वणी वजावती |प्रा०] [भावनी साहामी काय तो ॥ १२॥ aratast maaranी | भा०| तेवर तो भ्रमकार तु 14 हंस गमणी जा हंसली । प्रा० हूं हंसप्रति आये सार तो ।।१३।। कटी मेखला खलकावती |प्रा० पातलडी सिहलंकतो || गजगामिनी जाणे हस्तीनी स्तन भारी घणं नमी रही मा० सो प्रावती र नुटती (आ० उरवर हार लिहिकावती या हसती है जिन्हें या तरिण | 101 G हूँ हस्ती प्रति अवलकतो ||१४|| नीतंत्र भारें घरा खीनतो || कटी झणी माटि बीहू मन्त्री ||१२|| खलकावती चूड़ी हाथ तो ॥ बेगलिदे बामू सुनाती ॥१६॥

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