Book Title: Bai Ajitmati aur Uske Samkalin Kavi
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
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' अजीतमती एवं उसके समकालीन कवि
२५३
धूपरी घण घणी मधमे ।१०। जामो राज गुग! गावि स ०॥ मेडी मोटा मतवारमा ।ए। राय देखी सुख पावि स॥३६॥ समय की राज्य उत्तरघप०। लील प्रवामि प्रायि स०॥ सबै संन विदा हवी 140 कुसुमावली मने भावि ।स।।४।। राणी सूरंगे रमि । ०1 दलडीए दारिख आसन भेद ।।स०॥ सुरन रमतां श्रम हवा ।प०. पवनें नौगमयो खेद० स०॥४१॥
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तवाल द्वारा मुनि दर्शन
कोटवालि उद्यम करी । जोयू सहू पाराम ।। असोक वृक्ष हेठल रक्षो । मुनीवर दीठु ताम ॥१| नासा अग्ने धागपू । अझैन्मीतीत नेत्र ॥ शुद्ध चोद्रूप ने ध्यायतो । अभ्यंन र पवित्र ।।२।। अंतरदृष्टे नीहालसो । अनोपम मात्म स्वरूप ।। न मित्र समलेखितो । समता रसनु कूप ।।३।। यावीस परीसह जोकतो। मूकतो चोवीस संग ।। रत्नत्रय करी मंडीयो । मुगती रमा सुरंग ।।४।। दम दिशि मंवर पेहेरगणे । मलमलीन तेह गात्र ।।
ध्यान करी लंकरगी । जागो दया नो पाव ।।५।। कोतवाल की चिन्ता
कोटवाल ग्राभीयो । चिता मने बहू थाय । मझ ऊपेर घणं खीजसे । जो देखसे एह राय ।।६।। ए नागो अमंगलो । मसुची दीसे एह देह ।। किहां थी ग मही पाबयो । लाज तो एह गेह ।।७।। वेव धरम धकी वेगलो। क्षण क्षण नंदे वेद ।। एखमणो जाय प्रही थकु । तो जाये मुझ खेद ।।८।। एहनि नीकलया तणो। मांडू काई उपाय ॥
काज सरे जेम मझ तगा ! प्रहीया नाय ।।७।। कोतवाल को बगुला भक्ति
अम चीती मुबि पागले । बेठो कपट सभाग ।। जिम बक बिसि नदी सटि । मनि बीजु अनुराग ।।१०।।

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