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भाई अजीतति एवं उसके समकालीन कवि
गीतों के मूल पाठ मुनिसुव्रत जिन वभ्यत्ता रागु मलार
सकल जिरणेसर पणउ सरसं धरि ध्यानो जी । ए जह पाटण नगरु भलं तह अतिशय धानो जी । इक या प्रति षेत्र जारिणवि भविक जन धरणा । एतुरिय संघ आनंद उपज होइ महोछा जिरा तथा । परस्मासु पुरै विघन चूरं प्रगट जिरावरु जाणि जे। पाटण मानकि सुथिक बैठे सुव्रता जिन बंदिजं ॥ १
ए जो सुमति नरेसर नंदा पदमावती मातो जी । नसु नि काछि सो स्याम सरीरो जी ।
इक स्याम वर्णेहि अति मनोहर देखतां मनु मोहिए । द्रादिह जामरण महोखा मेर सिहरा सोहए । गायंति किन्नर प्रवर प्रछरि आणि माय सम्मपए । बीस जिावरु वादि सखी हे मनह बंद्धितु प्रमए ॥२॥
ए जहि जागे हो जोधनु जंतु भये यरागो जी । ए जहि जीत हो मदन भयंकरु उपसम रागो जी । उपसम रागों मदन जिस पंच श्राश्रव टालम् । दंसण गारण चरितमय जीय रगाण केवल पालए । दश श्रेठ गाहर मति आदिहि समोशर छञ्जए । मनसुव्रतां जिन चरा बंदै दुरित शयनां गज्जम् ॥५३॥
ए जो बसु गुरण मंडित जिगम्बर मुकति दातारो । चढतीसाति यारां गोभिना गुणंह पाराजी । अपार गुरगंष्ट न पार लाभ विविध जीव हितकरो । मनवच क्रम नरनारि से जनमि जनमि सुखंकरो । पद नामल सेवित वैह नन्वन चन्नपाल क्रिपा करो । मनसुव्रतां जे जात या सदा मंगलु त्याह घरो
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