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कवि धनपाल
धनपाल कधि अब तक हमारे लिये प्रशास एवं प्रचचित हैं। कपित्री बाई अजीतमति के समान प्रस्तुत पुष्प में ये दूसरे कवि है जिनका यहां परिषय प्रस्तुत किया जा रहा है। धनपाल कषि की रचनामो का संग्रह टोंक जिले के प्रमुख बष्णव तीर्थस्थल डिग्गी नगर के दिगम्बर जैन मन्दिर के शास्त्र भण्डार में संग्रहीत एक गुटके में उपलब्ध हुआ है। लेखक ने जून१९५३ में जब नगर के शास्त्र भण्डार के सूचीकरण का कार्य किया तब इस महत्वपूर्ण कवि की रचनामों का पता लगा सका ।
धनपाल प्राचीन कवि देह के सुपुत्र थे। ये वे ही देल्द कवि हैं जिनकी अब रग लुधिः प्रकाश एवं विज्ञान कीटि गीत नामक कृतियां उपलब्ध हुई है। दोनो ही लघु रचनायें हैं। इनके एक पुत्र ठक्कुरसी बड़े अच्छे कवि थे जियकी अब तक १५ कृतियां प्राप्त हो चुकी हैं । कविवर ठक्कुरसी का विस्तृत परिचय एवं उनकी कृतियों के मूलपाठ हम श्री महावीर ग्रन्थ अकादमी के दूसरे पुष्प में दे चुके हैं। ठक्कुरसी के परिचय के प्राधार पर बन पाल कवि संभवत: देल्ट कवि के दूसरे पुत्र थे। इसलिए ये भी ढूढाड के प्रसिद्ध नगर चम्पावती के रहने वाले थे । करि जाति से खण्डेलवाल दि. जैन एवं गोत्र से पहाड़िया थे । धनपाल कवि ने अपनी अधिकांश कृतियों में अपने बड़े भाई ठक्करसी के समान अपने प्राए को "वेल्ह नंदम लिखा है।
समय-कविवर ठक्कुरसी का समय हमने संवत् १५२० मे १५६० तक का माना है धनपाल ठक्कुरसी के छोटे भाई थे इसलिये इनका समर बत् १५२५ से १५६० तक का माना जा सकता है । स्वयं कवि ने अपनी कृतियों में रचना काल काल का उल्लेख नहीं किया इसलिये उक्त समय ही ठीक जान पड़ता है।
कृतियो-~-धनपाप्त कवि की टमकुरसी के समान अधिक रचनायें तो उपलब्ध नहीं हो सकी हे लेकिन एक ही पुटके में उपलब्ध कवि की रचनायें निम्न प्रकार है1. देखिये--- कविवर बूचराज एवं उनके समकालीन कवि
भेखक एवं सम्मादक-10 कस्तूरचंद फासलीवाल, पृष्ठ सं. २३२-२६५