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श्रीपाल चरित्र
प्रशाति
धीपा
गौवरि गिरि गहु उत्तिम थान । सूरवीर तहां राजा मान । ता प्रागै चांदन चौधरी । कोरती सव जगमें बिस्तरी ।। ३५।। जाति बरहिया गुन गम्भीर । अति प्रताप कुल राज धीर ।। ता सुत रामदास परबीन । नंदन प्रासकरन सुभदीन ।। ना मृत कृल मंटन परिमल्ल । यस मागरे में परि मल्ल ।। ता सम बुद्धि हीन नहिं अनि । तिन सुनियो श्रीपाल पुरांन ।। ३७।। ताकी छह का मति भई । तब श्रीपाल कथा बरनई । कीनी चौपई बंध वर्षांन । नबरस मिनित गुनह निघांन ।।३।। होइ प्रशुस जहां पद हानि । फेरि संवारे कवियन जानि ।। बार बार गंपोंकर जोरि । बुध जन मोहि देह मति षोरि ॥२२२२।।
नंदी गुरु ने गुरण के मूर, जिन ते होयमान प्रापूर । नंदी जिनबानी सोहनी, माते सुरगति होय प्राप्त घनी ।। नंदी कविकुल गुनह निवासु। जिहि पुरानु प्रगट यो सुखवासु ।। नंदी पण्डित कर नषान. नंदी श्रोता लोग सुजान ॥ नंदी जन सभा चिरकाल, नंदी जीवदया प्रतिपाल । छेव कथा को प्रयो प्रबै. जिनवर धरम पाराषौ सबै ।। जो भव दुख विनासन हारू, जो त्रिभूवन के जीव सिंगारू । जो विभुवन वर मंगल करन, मादि अंत नीव को सरम् ।। जो शिव रमणी को वरु भयो, जी जिनदेव सभा को जयो। साकी कथा निरन्तर भई, कवि परिमल्ल कथा वरण ।। थिर मनु कषा सुने जे कोई, मन वांछित फल पावै सोह। भर जो पढे पढावं सोय, ताक पोते असुभ न होय ॥ पर जो मरु नारी तु करें, सो पहुं गति को भ्रमणु हर। भव्यनको उपदेस बताय. निहल सो नर मुक्ति हि पाय ।। इति श्रीपाल कथा परिमरुल कृत भाषा चौपाईयक संपूर्णम्
। यह पाठ मूल प्रति में नही हे ।