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बाई अजीतमत्ति एवं उसके समकालीन कवि
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जाक राज सबै सुष लहै । कबहूं दुःप दाग्दि न गहै ।। आक राज दान सब दए । कहूं मान हीन नहीं भा ॥१८६।। जाक राज पाठ मद मते । जाके राज भोग रस रते ।। मा मिबह्यो कुल आ गर । भमिनि त्यो सीन हो भ.] जाकै राज न मै चोर । जा गज न ब्याप चोर ॥ जाक राज यहथौ परिवार | दुषी दीन जनको आधार ।।१८८।। जाकी कहै कथा सब कोइ ! असो दूजो भयौ न होइ ।।
ये गुन सुमिरै अरु लालिचाहि । नरनारी घर घर पिछताहि ।। १५६।। मैनासुदरी द्वारा दीक्षा ग्रहण करना
मैनासुन्दरी दिख्मा काज । चजियो धरी जिनेश्वर लाज ।। पाठ सह्स भामिन जे प्रांन । सेऊ संग भई परवान ।।१६।। सकल परिगह सुख्ख छिटकाह । चाली श्रीपाल की माइ ।। पुरवासी और नरनारि । दिव्या धारन वली विचारि ।।१६।। कोटीभट बन पहुंच्यौ जदै । महा मुनिस्वर देष्यो तबै ।। वंद्यो ग्यांन धरम परमेस । लाया प्रस्तुति करन नरेस ।।१९।। जय भविजन जलरूह के भान । जय गंति वारन परबांन ।। जय जय सिव रवनी गलहार । जय जय रत्नत्रय व्रत धार ॥१९३।। विषयन वन भूरन गज दंत | जय जय गुरण रत्नाकर संत ।। जय जय सर्म दोष दुष हरन । जय भव जलनित्रि तारन तनं ।। १६४|| जय जय मोह पार षग राज । जय जय कल्पतर सुष साज ।। जय जय कोह दयानल नीर । जय जय निर्नासन भवभीर ।। १६५।। जय जय मोह पास हत बीर । जय जय नभ कुजर हरि धीर ।। जय जय अट्ठ कम्म कुल नास । जय जय केवल ज्ञान गमास ।।१९६॥ जय जय सूर भर सबै पाय | जय जय केवल अपन राश।। जय जय सुर नर सेवै हूँद । जय जय करुणा रस जिनचंद ।।१६७॥ जय जय वृत भूषन मुनि राइ 1 जय जय सूर नर रोवत पाइ ।। जै जै क्षमावंत शुभ कंद । जै जै प्रमु नासन दुइ दंद ॥१६८।।
दोहा भो गुन सागर परमगुरु, सरग भाईगो सोहि ।। या सरार समुद्र मै, बूडत राघौ गोहि ।। १६६।।