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________________ बाई अजीतमत्ति एवं उसके समकालीन कवि ८ जाक राज सबै सुष लहै । कबहूं दुःप दाग्दि न गहै ।। आक राज दान सब दए । कहूं मान हीन नहीं भा ॥१८६।। जाक राज पाठ मद मते । जाके राज भोग रस रते ।। मा मिबह्यो कुल आ गर । भमिनि त्यो सीन हो भ.] जाकै राज न मै चोर । जा गज न ब्याप चोर ॥ जाक राज यहथौ परिवार | दुषी दीन जनको आधार ।।१८८।। जाकी कहै कथा सब कोइ ! असो दूजो भयौ न होइ ।। ये गुन सुमिरै अरु लालिचाहि । नरनारी घर घर पिछताहि ।। १५६।। मैनासुदरी द्वारा दीक्षा ग्रहण करना मैनासुन्दरी दिख्मा काज । चजियो धरी जिनेश्वर लाज ।। पाठ सह्स भामिन जे प्रांन । सेऊ संग भई परवान ।।१६।। सकल परिगह सुख्ख छिटकाह । चाली श्रीपाल की माइ ।। पुरवासी और नरनारि । दिव्या धारन वली विचारि ।।१६।। कोटीभट बन पहुंच्यौ जदै । महा मुनिस्वर देष्यो तबै ।। वंद्यो ग्यांन धरम परमेस । लाया प्रस्तुति करन नरेस ।।१९।। जय भविजन जलरूह के भान । जय गंति वारन परबांन ।। जय जय सिव रवनी गलहार । जय जय रत्नत्रय व्रत धार ॥१९३।। विषयन वन भूरन गज दंत | जय जय गुरण रत्नाकर संत ।। जय जय सर्म दोष दुष हरन । जय भव जलनित्रि तारन तनं ।। १६४|| जय जय मोह पार षग राज । जय जय कल्पतर सुष साज ।। जय जय कोह दयानल नीर । जय जय निर्नासन भवभीर ।। १६५।। जय जय मोह पास हत बीर । जय जय नभ कुजर हरि धीर ।। जय जय अट्ठ कम्म कुल नास । जय जय केवल ज्ञान गमास ।।१९६॥ जय जय सूर भर सबै पाय | जय जय केवल अपन राश।। जय जय सुर नर सेवै हूँद । जय जय करुणा रस जिनचंद ।।१६७॥ जय जय वृत भूषन मुनि राइ 1 जय जय सूर नर रोवत पाइ ।। जै जै क्षमावंत शुभ कंद । जै जै प्रमु नासन दुइ दंद ॥१६८।। दोहा भो गुन सागर परमगुरु, सरग भाईगो सोहि ।। या सरार समुद्र मै, बूडत राघौ गोहि ।। १६६।।
SR No.090071
Book TitleBai Ajitmati aur Uske Samkalin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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