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श्रीपाल परित्र
त्याग लेत ता हाथ न बहै । बारंबार विषयों कहै ।। बात कहै सो कर न संक। सुनि हो राइ करम के अंक ।।५३॥ ताको कछु न दीजे पौरि । प्रानी बाँध्यो विधी को मोरि ।। जित अंचतित ही ले जाइ । या मैं कछु न घोषी राई ।'५६॥ जा परि ताको दुष निरमयो । कोहू प सुष जाइ न दयौ ।। जौं पुत्री सिरजी सुषकाज । को दुष देवे सुनि हो राज ॥ अपनी कियो कछ जो होइ । तं काहू को बधे होइ ।। बिधनां अंक जु लिष्यो लिलार । ते निरबहै डोर इकसार ।।५।। भूलि गर्व कोऊ मति करौ । करता बली तहा मनि डरी ।। तिणस्यों बच पलक से घरै । पलमैं वन ताहि विष कर ॥५८|| करते पहल काम चितवै । यहै और की और ऋछु ठवै ॥ सोधे पंडित सुने पुरांन । ताको अपजस होड निदान ।।५६॥ यह अजुगति कछु कही न पर। राजसुता क्यों कोढी बरं ॥ जाक रूप जगत माहिए । सो क्यों कुष्टी को मोहिए ।।६०।। रम्ना हीन बात जीय धरी । तेरी बुधि विधाता हरी ।। अंसो से प्रारंभ्यो काज । जान्यो बुझ्यो बाहत राज ॥६॥
विनासके कारण
विप्र गयो धरि लयीन वित्त । लागी प्रगटन एह चरित्त ।। मंत्री बरजे फुनि फुनि तास । स्वामी एतौं धर्म विनास ।।६२॥ विनस मंत्री संका मन धरै। विनस भामिन प्राइस टरं ।। विनस राव मंत्र जो तजे । बिनस सुभट देखि रन भजे ॥६॥ विनस ईसुक्रोध परिहर । घिनसं साध क्रोध जो कर ।। विनस दाता जो न विवेक । विनसं वाढ चल दिन एक ।।६४॥ बिनस अति पंकज की बास । विनसं रागी रहे उदास ।। विनमै चोर पयासं भेव । विनर्स त्रिवटे मैं को देव ।।६।। विनसे साह उधारी देह । पिनस पनिका जो प्रत लेइ॥ विनसं अति कामातुर देह । विनर्स रावर नारी मेह ।।५।। विनस पात्र क्रिया जो हीन । विनर्स तपा लोभ करि लोन ।। विनस रांड राग चित धरं । विनर्स गेगी पात न करे ।।६।।