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श्रीपाल चरित्र
जय श्री प्ररह्नाथ जगनाह । अति बलिष्ट जिह मोह नसाह || जय श्री मल्लि मल्यो जिह मांन । पुन तीरय महि जो परधान ।। १२ ।।
जय श्री मुनिसुव्रत मुनिराई | इन्द्र अमर सेवहि तिस पाइ || जय जय नमि रतनत्रय धार मन के सकल विकार ।। १३ ।।
जय श्री नेमिनाथ गुणांन । तजि राजमती गए निर्वाण || जय श्रीपारस नाथ जिनंद | फनि मनि मंडित त्रिभुवन चंद ।। १४ । जय श्री बद्ध मान जिनरा | केरि लेखिन मासन थाइ ॥ चतुविंश जिन जे गुनमाल । प्रनवत दूरि होइ भ्रम जाल ।। १५ ।। अरु जे मुकतिपंथ मुनिगए । निरभय अलख अगोचर थए ।। कोनों नमस्कार परिमहल | जिनते दूरि होइ भव सल्ल ।। १६ ।।
जिनमुख अंबुज तैं उछरी । त्रिभुवन मांहि कला विस्तारी - द्वादशांग भासन भगवती । जास प्रसन्न होड बहुमती ॥ १७ ॥
विमल व वेदनि में कही । निज निपेठ अभंग भारही || निरगुण ताहि कहें बहु चंग । गुणता मैं राजे सरबंग || १८ ||
स्वामिनि जिन पर होहु दयाल । बढ़ें कथा ज्यों होइ रसाल ॥ मूरिष में पंडित पद नहीं । सारद गुन गाडी करि गहाँ ।। १६॥
षट वंसन मुख मंडन सार । मिथ्या कुमति विनासन हार ॥ २०
दोहा
मसुम हरन जग बंदनी, बंदी केवल संग ॥
देहु बुद्धि ब्रह्मादनी, ज्यों होइ उक्ति नवरंग ॥ २१ ॥
चीपई
तोहि सुमरि कर लेषनि गहौं । सिघ चक्र विधि वरनन कहीं || ज्यों सारद पसाउ मति लहीं। नवरस कथा प्रगट कर कहाँ ।। २२ ।।
गुरू गौतम मोहि देह पसाउ । वाढं कथा होइ मन चाउ ।।
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कुंनि परमेठि पंच गुरजांनि मन क्रम करि कही वषांनि ॥ २३५