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श्रीपालचरित्र (परिमल्ल कृत)
चौपई
मंगलाचरण
थीसिखचक्र चिधि केवल रिद्धि | गुण अनंत फल जाकर सिद्धि ।। प्रणामों परमसिद्धगुरू सोइ । भविक संग ज्यों मंगल होई ॥१॥ सिमपुरी सिद्धनि को थान । सिद्धपुरी पानंद निधान ।। प्रगट जोति त्रिभुवन मैं पाहि । अलख देव को लखै न ताहि ।। २ ॥ अंजन रहित निरंजन जानि 1 हीन बुद्धि क्यों सकं बषानि ॥ जय जिनंद प्रादीसुर देव । मुर नर कित पद पंकज सेद ।। ३ ।। जय अजितेसुर गुनह निधान । मान रहित मिथ्यातम भान ।। जय जिन संभव हर धिकार 1 सुभिरत अति प्रानंद दातार ।। ४ ।। जय मभिनंदन नंदन वीर । गुन गरिष्ट भव भंजन भोर ।। जय सुमतीसुर परम उदास । सुमय प्रकाशन कुमय विनास ।। ५ ।। जय जय पपप्रम पद् जाहि । श्री संजुत्त कवलासन माहि ।। जय सुपास उपहास निकंद । प्रणवत दूरि होइ भ्रम फंद ।। ६ ।। जय चंद्रप्रभ केवल नाम । होहु कृपाल सबै सुम्न धाम ।। जय पुष्पदंत जीत्यो जिहि मार । दुर्घर धर्यो चारित्रह भार ।। ७ ।। जय जय सीतलनाथ मुनिंद । असुर जक्ष सेवै सुर वृद ।। जय श्रीयांस रहित विघनेस । उदिन मुक्ति वधू परमेम ।। ८ ।। जय श्री बासपूज्य व्रत लीन । जैन धर्म उपदेस प्रवीन !" जय श्री विमलदेव मति चंग । विमल घर्ण गुरग विमल अभंग ।। ६ ।। जय अनंत जिनवर सुभ थान । मन वन ऋम जानियो प्रमान ।। जय श्री धर्मनाय सुखगेह । कंचन वणं विराजित देह ॥ १० ॥ जय श्री शांति पयासिय शांति । दुःख हरन मूरति सोभांति ।। जय श्री कुंथ कुपंथ चिनास । केवल उदित ज्ञान परकास ।। ११ ।।