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बाई अजीतमति एवं उसके समकालीन सादि
चौपई
सबै राज में दीजो सोहि 1 मन मैं तात राखिज्यों मोहि ।। कुदप्रभा को देकर भार । निकस्यौ तन श्रीवाल कुवार ।।१७१॥ ताकै बली सात में अग । कोही सबै लागि संग ।।
बुरे भेस दीये सब जनां । मोई कमर को वोदना ।।१७२।। श्रीपाल का नगर स्याग
राज विभति जिसी वरन ई । सामग्री सब गोहन भई ।। जब ये गांव बाहिरे भए । लोधन वीरदमन भरि लए ।।१७३।। शेवं सब नग्री को लोग । विधना ने कित किया वियोग ।। घर वर सोग सबै जन धरै । अति बिलषाइर करुनां करें ।। घर घर फरै अमंगलबार । मूल्यौ सपनि सुख अधिकार ।। घर घर सुननांन होइ गई। पर मैं राति द्यौस ते भई ।।१७४।। वे चलि दूरि पहु ते जब । कुदप्रभा सुदि पाई तब ।। तिन मनमैं दुख कर्यो असेस । प्राजि मूयो अरिदमन नरेस ॥१७४।। गैह भरि नैननि मूकी धाह । अन्न हूँ निश्न भई अनाह ॥ विधनां इह बूझिा न तोहि । पूत बिछोह दियो बात मोहि ॥१७६।। वीरदमन राषि समझाइ । कछ, फर्मगति कहीं न जान ।। सुभ अरु अशुभ ज लिम्की लिलार । को है ताहि मिटांवन हार ।।१७७।। अब यह होनहार सो भई । सब सामग्री देषन गई ।। कर्मयोग क्यों मेट्यौ जा । लामों कहै बात समझाई ।।१७८।। जो लो प्रशुभ जोग तनु दहै । तो ही श्रीपाल बन रहै ।। बहुर्यो सुष देखेंगौ धनी । पाइ रान करि है अागनी ।।१७६।। माता मूलि करौ मति मोग । दांना देवनि प» वियोग ।। मानस कौन वान, जांनि । सुपिनी शो तू म मैं आनि ।।१८०।। कुद प्रभामन गाडी कि। धरम ध्यान परिचित राषियौ ।। ले जाप जिनवर संभौं । मुनियर दान मान पाचर्यो ॥१८॥ श्रीपाल पहुनी उमान । रह गब मठ देवल थान ।। राज विभूति सबै ता संग । कोडारूढ राबनि को अंग ।।११।।