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शाई अजीतमति एव उसके समकालीन कवि
इंद्र चन्द्र धरनिद फनेस 1 तिनको वहत प्राहि मलबेस ।। प्रस्तुति करत जोरि दो हाथ 1 ठाढे रहत सुनी हो नाथ ।।४७॥
श्रेणिक द्वारा महावीर बन्दना
अमर खचर गन ग्रंथप जिते । सेव करन पावत है तिते ॥ प्रसों सुनि मानंधौ राउ । सीध तामह तह फियो पसाउ ॥४८।। कर कंकन प्राभरन अपार । दीनों ताहि न लाई बार 11 प्रासन ते उठि ठाढी भयो , मनको भरम सबै भजि गयो ।।४।। तिह ठा उपज्यो सुख असेसु । तीन प्रदक्षणा दई नरेसु ॥ वाषिरण ज्यों मनमैं सुष पाइ । फलि गयो सो अंगिन माइ ।।५।। मानंद भेरि घाइ सुख लह्यो । परजन सहित राइ उमगह्यो । पाटवर्द्धना गुणनि मांग । नारि चेलमा ताकै संग ॥५१ । गुण बरनत सो पहूं तो तहाँ । समोरारण श्रीजिन को जहाँ ।। द्वादस कोठा देखन लए । धनपति प्राइ माप निरमए ॥५२।। तिनकी सोभा बरनि जो कहों । कहत कथा कछु अंत न लहौं । मांनखयंभ देषियौ राइ । अति प्रानंद्यौ चित्तन समाइ ।।५।। तन जिनवर युति लाग्यौकरण । जय जय जरा जनम मौहरण ।। जय जय उदति नभ जीति जिनेस । जय जय मुक्ति वधू परमेस ।१४।। जय जय छियालीस गुणमंड । जय प्रतिसै चौतीस प्रचंड ॥ तीन लोक को सोमा जाहि । वोऊ और न उपमा पाहि ।।५।। जय जय केवलज्ञान पयास । जय जय निर्वासन भव श्वास । जय जय मान रहित जिनदेव । नर सुर असुर करें जा सेव ||२६|| जय जय प्रस्तुति राव करेइ । वारंवार प्रदक्षणा देश ।। नयों प्रतक्ष दु:ष भजि गयो । मन त्रच काय सप अति भयौ ।।५।।
गौतम स्वामी गरणहर पाहि । नमस्कार कीयो नूप ताहि ।। जिह ठा अजिकानि को साथ 1 वंदन करे तहां नर नाथ ।।५८।। अरु षुल्लक तहां जुरै आहि । समाधान तिन पूछ राई । शाके ह्रदै कछु न कुभाव । नर कोठा तहाँ बैठ्यो राय ।।५।।