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श्रीपाल चरित्र
श्रेणिक द्वारा सिधावस का जानने की इच्छा प्रकट करना
श्रेणिक पूछ वीर जिनम् । गिद्धचक्र फल कहि परमेसु ।। गुरग अनंत राजे मग । वाणी तब उच्छरी अमंग ॥६॥ गोतम स्वामी गुगह निधान । लागौ परिछन केवलनान ।। सुनि सुनि श्रेणिक गइ प्रवानि । सिद्धक् अत काही वषांनि ॥६१।।
कथा का शाका
जवदीप मनोगि उदार । जोजन लछि तास विसतार ।। छार सिंधु ता चहुं धां बहे । अलि प्रवाह को पारन लहै ।।६।। ता मै भरह क्षेत्र भो गार । मन्त्र ही क्षेत्रनि में अधिकार ।। सामहि अंगदेश परवान । अवर देनता गम नहि अनि ॥६॥
चम्पापुरी का वैभव
तहां नगर चंपापुरी वमं । देखत जाहि चिन उल्हस ।। सोहं गृह सनषने अवाम् । द्वार कंचन बलस निवास ॥६॥ घर घर प्रति चौतरा सुटान । अति उज्जन ते पाटिक समान !! विचि मिचि हींगुर बन्यों सुरंग । ते चमका देपियौ सुचंग ।। ६५ घर घर सर्व लोग पर धान । नक्षमीन ग व गुन जान ।। घर घर सुर. वेद घुनि बरं । गगफत भाषा उच्चर ॥६६।। सामोद्रक घ्यावारन पुरान । घर घर ही अरथ बषांन । जोतिग अरु वैदक गुन लीन । सब न' कोक कना परबीन ॥६७॥ सब को दया धर्म व्यापर । परसंगा नहि कोऊ करें। अति रमनीक हाट बाजार । बस तहाँ नर माह सा धार ।।६।। विराज नग निरमोलिक चुनी । तिनको अस वोन सब दुनी ।। कह' होइ बालक पेखनौं । मो बन नाहि कहत महि पनौं || कह कहु नाचक नाच ठाट 1 पाहु हु जाच भन भाट ।। कुली छतीस बस सहा लोइ । कुल की रीति न छोडे कोइ ।।७०।।