SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 50
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २६ श्रीपाल चरित्र जय श्री प्ररह्नाथ जगनाह । अति बलिष्ट जिह मोह नसाह || जय श्री मल्लि मल्यो जिह मांन । पुन तीरय महि जो परधान ।। १२ ।। जय श्री मुनिसुव्रत मुनिराई | इन्द्र अमर सेवहि तिस पाइ || जय जय नमि रतनत्रय धार मन के सकल विकार ।। १३ ।। जय श्री नेमिनाथ गुणांन । तजि राजमती गए निर्वाण || जय श्रीपारस नाथ जिनंद | फनि मनि मंडित त्रिभुवन चंद ।। १४ । जय श्री बद्ध मान जिनरा | केरि लेखिन मासन थाइ ॥ चतुविंश जिन जे गुनमाल । प्रनवत दूरि होइ भ्रम जाल ।। १५ ।। अरु जे मुकतिपंथ मुनिगए । निरभय अलख अगोचर थए ।। कोनों नमस्कार परिमहल | जिनते दूरि होइ भव सल्ल ।। १६ ।। जिनमुख अंबुज तैं उछरी । त्रिभुवन मांहि कला विस्तारी - द्वादशांग भासन भगवती । जास प्रसन्न होड बहुमती ॥ १७ ॥ विमल व वेदनि में कही । निज निपेठ अभंग भारही || निरगुण ताहि कहें बहु चंग । गुणता मैं राजे सरबंग || १८ || स्वामिनि जिन पर होहु दयाल । बढ़ें कथा ज्यों होइ रसाल ॥ मूरिष में पंडित पद नहीं । सारद गुन गाडी करि गहाँ ।। १६॥ षट वंसन मुख मंडन सार । मिथ्या कुमति विनासन हार ॥ २० दोहा मसुम हरन जग बंदनी, बंदी केवल संग ॥ देहु बुद्धि ब्रह्मादनी, ज्यों होइ उक्ति नवरंग ॥ २१ ॥ चीपई तोहि सुमरि कर लेषनि गहौं । सिघ चक्र विधि वरनन कहीं || ज्यों सारद पसाउ मति लहीं। नवरस कथा प्रगट कर कहाँ ।। २२ ।। गुरू गौतम मोहि देह पसाउ । वाढं कथा होइ मन चाउ ।। 7 कुंनि परमेठि पंच गुरजांनि मन क्रम करि कही वषांनि ॥ २३५
SR No.090071
Book TitleBai Ajitmati aur Uske Samkalin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy