SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 51
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बाई अजीतमल एवं उनके समकालीन कवि पंच परमेष्ठी एलबम जय जय नमों देव प्ररिहंत । है प्रसिद्ध गुण जाहि अनंत || जय जय नमों सिध वर देव | अलख रूप त्रिभुवन करि सेव ॥ २४ ॥ जय जय पाचारि मुनिराह । श्रमर खबर जन बंदहि पाइ ॥ जय जय नमों परम उरका जय जय साथ लोय बर बीर तिमको नमसकार कर जोरि | उदीयत गुंभ जा भगनाह ॥ २५॥ अमृत सुधि बयान घरि ।। छातं जनमन होइ बहोरि ||२६|| पढत सुनत मन उपज चाउ । कहि परमल हीऐं घरि भाउ || कैसे श्रीपाल औतरयो । कैसे कुष्ट व्याधि करि भयौ ॥ २७ ॥ भोपाल के जीवन को जानने की उत्सुकता रचना काल. कैसे बन उद्यानह गयौ । कैसे सिद्धचक व्रत लयो । कैसे सायर बूड्यो जाय । कैसे कोढ़ गयो निकुताय ॥ २८ ॥ कैसे दल तिन अगदी घनीं । कैसे प्रगटयों वलु अपनी || कैसे राजकीयौ परत्रांन | कैसे वाकी चल्यो पुरान ।।२६।। संत सोलह उपरं । सांवन इक्यावन श्रागरे ॥ मांस साठ यहूती या वर्षारित को कई बढाइ ||३०| पक्ष उजाली झायें जांनि । सुकरबार वार परकांनि ॥ कवि परमहल शुभ करि चित् । प्रारंभी श्रीपाल चरितु ॥ ३१ ॥ । बाबर पातिसाहि होइ गर्यो । तासु साहि हमाउ भयो । ता सुख अकबर साहि प्रवांन ॥ सौ तप तो दूसरी मान ॥३॥ा सार्क राज में कहूँ अनीति । वसुधा सकल करी व सि जीती ॥ अबुदीप सास की अति दूजी, अब म तांहि समन ||३३|| सार्क राज कया यह करी | कवि परमल प्रगट विससरी ॥ जंबूप प्रगट सुभान । जोजन लक्ष नासु ॥१४॥ 79
SR No.090071
Book TitleBai Ajitmati aur Uske Samkalin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy