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श्रीपाल चरित्र
जा चहु फेरि सिंघ जल बह । कोऊ जाको पार न लहं ।।
तामै भरहषेत परवान। सब ही क्षेत्रनि में परघांन ॥३५॥ मगध के राजा श्रेणिक का वर्णन
मगधह नाम राज तिह देस । भूमंडल में सुजस असेस ।। नयर राजिगर सुजस बसाइ । बाकी स ही मजा । ३५६. अमरपुरी अमरनि की जिसी । है प्रसिद्ध महिमंडल तिसी ।। सुन्दर गृह सतपने प्रबास । बाडी बाग कुया चहू पास ॥३७॥ श्रेणिक राव तिहां अरिमल्ल | करै राज प्रगट्यो मुब मल्ल ॥ एक छत्र निवर्स इह रीति । बसुधा सकल करी वसि जीति ।।३८।। कथा नाय है लाको नाम पुन्यवंत सबको सुषधांम !! ताकै सत्तुसील जानिये । घरमातमा बसे गांनि ।।३९॥ कोऊ ताके दुषी न लोइ । दया दोन पाले सब कोच ।। ताकै बहुत महासुत जान । तामै बारिषेन परधान ॥४॥ तसु राणी चेलणा परषांन । सत्तसील अरु मुणह निघांन ।। कछु सुन्दरता कहीपन परै। दरस होत पापनि को हरै॥४१।। मिथ्या दरसन रीति सुजांनि । समकित की परतीति वानि ॥ अरु प्रति जनधर्म की लीन । दया दान पालन परवीन ॥४२॥ कर राज श्रेणिक नर पार । बहुत राइ सेथे दर वारि ।। एक दिवस सिंघासनि भाइ बैठमो सिर परि छत्र धरा ।।४३॥ सेषग लाप सेव ता करें । हय गय गाह घौर वंढरै ।। तिह अवसरि प्रायो बनपार । हर्षवंत मनमाहि अपार ॥४४॥
श्रेणिक के दरबार में बमपाल का प्रागमन
यह रित के जू फूल भए । भति मनोग राजा कौं दए । विपुलागिर परवत परवान । प्रायों समोसरग तिह थान ।।४।। चतुर्विशतमौं वीर जिनंद । दरस होत दुख दुरति निकंद ॥ कोतूहल कछ कहो न जाइ । सुर्ग लोक लिह कां रझो माइ ११४६।।