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कविवर परिमल्स चौधरी
वीरदमा ने अपनी हार मान ली और प्रीपाल को राज्य भार सम्हला कर स्वयं ने जिन दीक्षा धारण कर ली। श्रीपाल ने सब राज्य सुख भोगा और धर्म नीति के अनुसार राज्य किया। कवि ने धर्म की बड़ी महिमा गायी है। धर्म का प्रभाव एवं तेज अपूर्व होता है जिसके हृदय में धर्म उतरता है उसे चारों योर से गुग्ध शांति एवं अपूर्व प्रानन्द प्राप्त होता है
धर्म एक त्रिभवन में सार, घरमै सुति विनासम हार । धर्म एक सब सुख को कंदु, घरम एक भजे दुख दंदु ।।२०२५।। धर्म पसाय गज गुर्जर, धरम पसाय हौस होय घर । धरम पसाय चंवर सिर दरै, घरम पसाय छन्त्र सिर धरै ।।२०२६॥
अन्त में श्रीपान एवं मैनासुन्दरी दूसरे सहस्रों राजानों एवं रानियों के साथ जिन दीक्षा धारण कर ली। मैनासुन्दरी की घोर तपस्या का बहुत ही अच्छा वर्णन किया है---
अब वन मारग सो पगु पर, ग्रीषम रितु सिकता पर जरै । सरद सौम सम वदनी बिकासु, पोमनि करती पोष पियास । ग्रीषम हल माह परभात, हो तो मलिन सोत को घात ।।७]
इस प्रकार श्रीपाल चरित हिन्दी का उत्तम काव्य है । इस काव्य से हिन्दी काव्य जगत् को गतिशीलता मिलती है । महाकवि सुलसीदास की रामायमा के पूर्व दोहा, चौगई में रचित श्रीपाल चरित से तत्कालीन समाज में हिन्दी का अध्ययन प्रध्यापन, काव्य निर्माण में कवियों एवं विद्वानों की रूचि बढी श्री। पग्मिल्ल कवि का आगरा केन्द्र था और अज भूमि में हिन्दी का प्रचार प्रसार करने में जैन कवियों में महत्वपूर्ण योगदान दिया था।
श्रीपाल चरित में काय के नश्यक द्वारा जिन जिन देणों एवं द्वीपों का भ्रमण किया था उनके नाम निम्न प्रकार है--
१. राजगह-राजा श्रेणिक की राजधानी, मकान महावीर के बिहार का प्रमुख केन्द्र ।
२, चम्पापुर-अंग देश की राजधानी, श्रीपाल के राज्य की राजधानी, भग वान वासुपूज्य की निर्वाण स्थल ।
३. उज्जन-मालवा प्रदेश की राजधानी, मैना सुन्दरी को जन्म स्थली