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बाबू देवकुमार जी का महान त्याग
[श्री १०५ क्षुल्लक गणेश प्रसाद जी वर्णी ]
बन्धुवर, संसार में जो जन्मता है वह अवश्य मरण को प्राप्त होता है; किन्तु जो जन्म लेकर परोपकार कार्य कर जाता है. जन्म उमीका ही सार्थक है- हमारे स्वर्गीय बाबू देवकुमार जी का जन्म केवल म्वकल्याण में ही न गया, परन्तु आपके द्वारा ऐसे कार्य निष्पन्न हुए जिनसे प्राणी मात्र को लाभ पहुंच रहा है। श्राप ही की उदारता का फल है जो आज म्याद्राद विद्यालय द्वारा श्राओक छात्र प्रति वर्ष स्नातक होर निकलते हैं- आपने केवल आर्थिक सहायता ही नहीं दी साथ ही साथ विद्यालय को गंगा के तटपर एक विशाल भवन भी दिया, जिसमें १०० छात्र अध्ययन कर सकते हैं, जिसका निर्मागा दर्तमान में ५ लाख रुपये में भी होना सम्भव नहीं। यह आपका महान त्याग है; इसकी समता करना अनुचित होगा। हमारा विश्वास है कि जैन समाज में प्रौढ़ शिक्षा का बीजारोपण इसी संस्था द्वाग हो रहा है; अतः इसका श्रेय बाबू साहब को अत्यधिक है। उनकी आत्मा स्वर्ग में भी विद्यालय की कीर्ति से प्रसन्न होती होगी । यही नहीं पारा में एक सरस्वती भवन भी खेल गए, जिसमें सहस्रों शास्त्र ताड़पत्र पर लिग्वे हुए विद्यमान हैं- इसके सिवाय शिखिर जी बीसपंथी कोठी के उत्तम प्रबन्ध में सहायक हुए तथा जिस समय कुंडनपुर क्षेत्र में महासभा हुई उस समय उसके सभापति आपही थे । उस समय ४०००० जनता वहां उपस्थित थी, आपने जो निर्भीक होकर भाषण दिया, यदि जैन जनता उस पर आरूढ़ होकर चलती तब उसका यह जो हास देखा जाता है; न होता । अस्तु मैं उनके त्यागका सानुमोदक हूँ; आपके सुपुत्र बाबू निर्मन्न कुमार व चक्रेश्वर कुमार भी उसी मार्ग पर चल रहे हैं।
आपने जिस विशाल भवन में गंगा तटपर जो विद्यालय चल रहा है, वह भवन त्याद्वाद विद्यालय को अर्पण कर दिया है।
आज तक जो व्यय भवन की मरम्मत में लगता था, आपके द्वारा ही दिया जाता रहा है, एतदर्थ मैं क्या सम्पूर्ण जैन जनता आपका शुभ स्मरण रखेगी। आपका कुटुम्ब मात्र धर्मज्ञ है; वर्तमान में जो जैन-बालाविश्राम जिसमें सैकड़ों जैन कन्या, महिला व विधवाएँ शिक्षा पा रही हैं, आपही के स्वर्गीय लघु भ्राता की धर्मपत्नी श्री ब्र० चन्दाबाई जी ने स्थापित किया है।