Book Title: Atmanushasanam
Author(s): Gunbhadrasuri, A N Upadhye, Hiralal Jain, Balchandra Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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प्रस्तावना
निर्देश उत्तरपुराणकी प्रशस्तिमें नहीं किया गया है । फिर भी यह अनुमान किया जा सकता है कि उन्होंने उसकी रचना जिनसेनाचार्यके स्वर्गस्थ होते ही प्रारम्भ कर दी होगी। इसमें उनका५-७ वर्षका समय लग सकता है । इस प्रकार गुणभद्राचार्यका समय श. सं. के अनुसार ८ वीं शताब्दीका उत्तरार्व निश्चित होता है। उन्होंने अपने अस्तित्वसे इस महीमण्डलको ठीक कबसे कबतक मण्डित किया, इसके यथार्थ निश्चय करनेका कोई भी साधन उपलब्ध नहीं है । परंतु हां,उत्तरपुराणकी अंतिम प्रशस्तिसे-जो उसका अंश गुणभद्रके शिष्य लोकसेनके द्वारा रचा गया है-इतना अवश्य निश्चित होता है कि श.सं.८२० में अनेक भव्यों द्वारा महोत्सवपूर्वक उस महापुराणकी पूजा सम्पन्न की गई थी। इससे इतना तो निश्चित है कि श. सं. ८२० के पूर्वमें उक्त महापुराण पूर्ण हो चुका था । सम्भव है लोकसेनके तत्वावधानमें सम्पन्न हुआ उक्त महापुराणका वह पूजामहोत्सव गुणभद्राचार्यके स्वर्गवासके पश्चात किया गया हो।
उनकी कृतिस्वरूप ग्रन्थोंमें उपर्युक्त उत्तरपुराण और प्रकृत आत्मानुशासके अतिरिक्त जिनदत्तचरित्र भी उपलब्ध है। इनके अतिरिक्त उनके द्वारा रचा गया अन्य कोई ग्रन्थ दृष्टिगोचर नहीं होता है ।
संस्कृत टीकाका स्वरूप प्रस्तुत ग्रन्थके साथ जो संस्कृत टीका प्रकाशित की जा रही है वह प्रभाचन्द्राचार्यके द्वारा रची गई है । यह संक्षित टीका ग्रन्थके मूल भागका ही अनुसरण करती है । उसमें प्रायः कहीं कुछ विशेष नहीं लिखा गया है-शब्दार्थ मात्र किया गया है । इतना ही नहीं,बल्कि कहीं १. शकम्पकालाभ्यन्तरविंशत्यधिकाष्टशतमिताब्वान्ते । मंगलमहार्थकारिणि पिङगलनामनि समस्तजनसुखदम् ।। श्रीपञ्चम्यां बुधार्द्रायुजि दिवसजे मन्त्रिवारे बुधांश पूर्वायां सिंहलग्ने धनुषि धरणिजे सैहिकेये तुलायाम् । सूर्ये शुक्रे कुलीरे गवि च सुरगुरौ निष्ठितं भव्यवर्षेः प्राप्तेज्यं सर्वसारं जगति विजयते पुण्यमेतत्पुराणम् ॥
____उ. पु. प्रशस्ति ३५-३६.