Book Title: Atmanushasanam
Author(s): Gunbhadrasuri, A N Upadhye, Hiralal Jain, Balchandra Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 19
________________ १८ आत्मानुशासनम् महापुराणकी रचना प्रारम्भ की है। वह महापुराण आदिपुराण और उत्तरपुराण इन दो भागोमें विभक्त है । आदिपुरागमें सैंतालोस पर्व हैं । इनमें जिनसेनाचार्यके द्वारा४२पर्व ही रचे जा सके हैं । तत्पश्चात् उनका स्वर्गवास हो गया । तब उनकी इस अधूरी रचनाको इन्हीं गुणभद्राचार्यने पूरा किया है । उन ४२ पर्वोमें लगभग १०हजार श्लोक होंगे। उनकी रचनामें ५-६ वर्षका समय लग सकता है । इस प्रकार जिनसेनाचार्यका अस्तित्व लगभग शक सं ७५९+६ - ७६५ तक पाया जाता है। जैसा कि हरिवंशपुराणके कर्ता श्री जिनसेनने अपने हरिवंशपुराणके प्रारम्भम उल्लेख किया है ११पार्वाभ्युदयकी रचना वे-गुण भद्रके गुरु जिनसेनाचार्यजयधवलाके पूर्व में ही कर चुके थे। कारण इसका यह है कि उक्त पार्वाधुदयका उल्लेख करनेवाले उस हरिवंशपुराणको श. सं. ७०५ में पुरा किया गया है। अब इस पाश्र्वाभ्युदयकी रचनाके समय यदि जिनसेन स्वामीकी अवस्था बीस वर्षके भी लगभग रही हो तो उनका जन्म श.सं. ६८५ के लगभग होना चाहिये । इस प्रकार श्री जिनसेनाचार्य श. सं. ६८५-७६५ तक करीब ८० वर्षको अवस्था तक विद्यमान रहते हैं२ । जिनसेनाचार्यका स्वर्गवास हो जानेपर उनके उस अधूरे आदिपुराण (४३-४७) को तथा समस्त उत्तरपुराणको श्री गुणभद्राचार्यने पूरा किया है३ । इसमें उन्होंने लगभग ९६२० (आ. पु. १६२०+उ. पु. ८०००) श्लोकोंकी रचना की है। इस कार्यको उन्होंने कब पूरा किया, इसका १. याऽमिताभ्युदये पार्श्वजिनेन्द्रगुणसंस्तुतिः । स्वामिनो जिनसेनस्य कोतिः संकीर्तयत्यसौ । ह. पु. १-४०. २. यह अनुमान स्व. पं. नाथूरामजी प्रेमीने किया है ( जैन साहित्य और इतिहास पृ.१३९-४१)। लगभग ऐसा ही अनुमान कसायपाहुड भाग१के सम्पादकोंने भी उसकी प्रस्तावना (पृ.७५-७७) में किया है । ३. जिनसेनभगवतोक्तं मिथ्याकविवर्षदलनमतिललितम् । सिद्धान्तोपनिबन्धनका भर्ना विनेयानाम् ।। अतिविस्तरभीरुत्वादवशिष्टं संग्रहीतममलधिया । गुणभद्रसूरिणेदं प्रहोणकालानुरोधेन ॥ उ. पु. प्रशस्ति १९-२०.

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