Book Title: Asrava Tribhangi
Author(s): Shrutmuni, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Gangwal Dharmik Trust Raipur

View full book text
Previous | Next

Page 12
________________ हस्स रदि अरदि सोयं भयं जुगंछा य इत्थिपुंवेयं । संद वेयं च तहा णव एदे णोकसाया य॥6॥ हास्यं रतिः अरति: शोक: भयं जुगुप्सा च स्त्री-पुंवेदौ। षंढ़ो वेदः च तथा नवैते नोकषायाश्च|| अर्थ - हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, स्त्रीवेद, पुंवेद और नपुंसकवेद ये नौ नोकषाय जानना चाहिए। मणवयणाण पउत्ती संचासचुभयअणुभयत्थेसु । तण्णामं होदि तदा तेहिं दु जोगा हु तज्जोगा ।।7।। मनोवचनानां प्रवृत्तिः सत्यासत्योभयानुभयार्थेषु । तन्नाम भवति तदा तैस्तु योगाद्धि तद्योगाः ।। अर्थ - मन और वचन की सत्य, असत्य, उभय और अनुभय रूप पदार्थों में प्रवृत्ति - उनके नामानुसार सत्य मनोयोग, असत्य मनोयोग उभय मनोयोग और अनुभय मनोयोग तथा सत्य, असत्य, उभय और अनुभय रूप वचनयोग कहलाती है। ओरालं तंमिस्सं वेगुव्वं तस्स मिस्सयं होदि। आहारय तंमिस्सं कम्मइयं कायजोगेदे ||8|| औदारिकं तन्मिभं वैक्रियिकं तस्य मिश्रकं । आहारकं तन्मिनं कार्मणकं काययोगा एते॥ अर्थ - औदारिक, औदारिक मिश्र, वैक्रियिक, वैक्रियिकमिश्र, आहारक, आहारकमिश्र तथा कार्मण काययोग इस प्रकार सात प्रकार का काययोग होता है। [3] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98