Book Title: Asrava Tribhangi
Author(s): Shrutmuni, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Gangwal Dharmik Trust Raipur

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Page 93
________________ संदृष्टि नं.59 असंज्ञी आस्रव 45 असंज्ञी में 45 आस्रव होते हैं जो इस प्रकार हैं - 5 मिथ्यात्व, मन अविरति बिना 11 अविरति, योग 4 (अनुभयवचनयोग, औदारिक, औदारिकमिश्र और कार्मणकाययोग), कषाय 16, नोकषाय 9। गुणस्थान मिथ्यात्व आदि दो होते हैं। गुणस्थान | आस्रव व्युच्छित्ति आस्रव आस्रव अभाव 1.मिथ्यात्व | 7 [5 मिथ्यात्व, अनुभयवचनयोग, औदारिककाययोग] 45 [5 मिथ्यात्व, मन बिना 11 अविरति, योग4(अनुभयवचनयोग, औदारिक, औदारिकमिश्रऔर कार्मण काययोग), कषाय 16, नोकषाय] 2.सासादन | 4[अनन्तानुबंधी 4] 38 मिन बिना 11 अविरति, औदारिकमिश्रऔर कार्मणकाययोग, कषाय 16, नोकषाय 9] 7 [मिथ्यात्व5, अनुभयवचनयोगऔर औदारिक काययोग] कम्मइयं वञ्जित्ता छपण्णासा हवंति आहारे। तेदाला णाहारे कम्मइयरजोगपरिहीणा ||60|| कार्मणं वर्जयित्वा षट्पंचाशद्भवन्त्याहारे। त्रिचत्वारिंशदनाहारे कार्मणेतरयोगपरिहीनाः॥ अर्थ - आहारक जीवों में कार्मण काययोग के बिना शेष छप्पन आस्रव तथा अनाहारक जीवों में कार्मण काययोग के बिना शेष चौदह योगों को कम करने पर (57-14) = 43 आस्रव होते हैं। अर्थात् अनाहारक जीवों में कार्मण काययोग का सद्भाव पाया जाता है, किन्तु अन्य योगों का नहीं। 1. कार्मणं विहाय इतरै: चतुर्ददशयोगैहींना इत्यर्थः ।। [84] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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