Book Title: Asrava Tribhangi
Author(s): Shrutmuni, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Gangwal Dharmik Trust Raipur

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Page 97
________________ पयकमलजुयलविणमियविणे - यजणकयसुपूयमाहप्पो । णिज्जियमयणपहावो सो वालिंदो चिरं जयऊ ||62|| पदकमलयुगलविनतविनेयजनकृतसुपूजामाहात्म्य: । स बालेन्द्रः चिरं जयतु ॥ निर्जितमदनप्रभाव: अर्थ - जिनके चरण कमल युगल नम्रीभूत शिष्य जनों के द्वारा की गई विशिष्ट. ८. पूजा से माहात्म्य को प्राप्त हैं तथा जिन्होंने कामदेव के मद के प्रभाव को जीत लिया है, वे बालचन्द्र मुनि चिरकाल तक जयवंत रहें । - इति मार्गणाव - त्रिभंगी । इति श्री - श्रुतमुनि-विरचितास्रव - त्रिभंगी समाप्ता । Jain Education International For Private & Personal Use Only [88] www.jainelibrary.org

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