Book Title: Asrava Tribhangi
Author(s): Shrutmuni, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Gangwal Dharmik Trust Raipur

View full book text
Previous | Next

Page 96
________________ संदृष्टि नं. 61 अनाहारक आस्रव 43 अनाहारक में 43 आस्रव होते हैं जो इस प्रकार हैं - 5 मिथ्यात्व, 12 अविरति, कार्मणकाययोग, कषाय 16, नोकषाय 9 । गुणस्थान 1, 2, 4, 13 ये चार होते हैं। आस्रव आस्रव अभाव गुणस्थान | आस्रव व्युच्छित्ति । 1.मिथ्यात्व | 5 गुणस्थानक्त | 43 [उपर्युत] 2.सासादन 5[अनन्तानुबन्धी4, स्त्रीवेद 38 [12 अविरति, कार्मण काययोग, |5[मिथ्यात्व 5] कषाय 16, नोकषाय] 4.अविस्त 32[अप्रत्याख्यानादि 12, कपाय, हास्यादित नोकषाय,पुद, नपुंसकद] 33 [उपर्युक्त 38-5 (अनन्तानुबंधी 4, | 10[मिथ्यात्व 5, | स्त्रीवेद)] (अनन्तानुबंधी 4, स्त्रीवेद)] 13.सयोग केवली कर्मणकाययोग] [कर्मणकाययोग 42[उपर्युक्त 10+ अविरतिगुणस्थान के व्युच्छेत्र 32 आम्रव इदि मग्गणासु जोगो पचयभेदो मया समासेण । कहिदो सुदमुणिणा जो भावइ सो जाइ अप्पसुहं ।।61|| इति मार्गणासु योग्यः प्रत्ययभेदो मया समासेन । कथित: श्रुतमुनिना यो भावयति स याति आत्मसुखं । अर्थ - इस प्रकार मार्गणाओं में योग आम्रव (प्रत्यय) भेद मुझ श्रुतमुनि के द्वारा संक्षेप से कहे गये। जो उपर्युक्त आम्रवों का भावपूर्वक चिन्तवन करता है, वह आत्म सुख को प्राप्त करता है। [37] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 94 95 96 97 98